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एक आश्चर्यजनक स्वप्न,
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एक आश्चर्य जनक स्वप्न. ( लेखक शेरसिंह कोठारी सैलाना.)
अनुसंधान पु. ६ पृष्ठ ३२९ थी. हे मातेश्वरी म तीन माताओके हाल तो अच्छी तराहसे सुन चुका अब कृपाकर थोडासा तेरा बयानभी बतादे.
मध्यस्थ:-हे तनय! भै मैरि स्थितिका क्या बयान करुं यदिसचमे पूछे तो योगीश्वरोंतककी माताभी मैही हुं, और जो जादे कहुं तो मोक्षभी मुझही. मे रक्खा हुवा है.
जो पुरुप मध्यस्थ दृष्टिसे सर्वको देखता है अर्थात् शत्रु मित्रको समकर जानता है वह अवश्यमेव अचिरात् मोक्षको प्राप्त होता है.
हे तात ! हमारे जैन शास्रोमें जगे २ बयान आता है कि शत्रु मित्रको बराबर करके देखना चाहिये; तथा जिस वख्त अपन प्रतिक्रमण क्रिया करते हैं तब मध्यस्थ दृष्टि से सर्वको क्षमाते है. देख श्रावक "वंदीतासूत्र" मे तथा साधु पगाम सज्झायमे क्या कहते हैं:
गाथा खामेमिसव्वजीवे । सव्वेजीवा खमंतुमे ||
मित्तिमेसव्वभूएसु । वरं मझं न केणई ॥ अर्थः-मै सर्व जीवोको क्षमाता हुँ, सबब सर्व प्राणी मुझे क्षमना. मुझे सके साथ मित्रता है; वैरभाव किसीके साथभी नहीं ॥ १॥ अपरंच,
गाथा
सव्वस्सजीवरासिस्स । भावओधम्मनिहियनियचितो ॥ सव्वंखमावइन्ता । खमामिसव्वस्स अहयंपि ॥ १॥