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________________ १९११] वैश्य जतिकी पूर्वकालिन सहानुभूतिका दिगदर्शन. [३०७ कों चारसे गुणाकरने पर बीस ही होते हैं यह सिद्धान्त ऐसा है कि इसको उलटनेमें ब्रह्माभी असमर्थ है परन्तु इस प्रकारका निश्चित सिद्धान्त राज्यनिति तथा धर्म आदि विवादास्पद विषयोंमें माननीय हो यह बात अति कठिन तथा असम्भवत् है क्योंकि--मनुष्योंकी प्रकृतियोंमें भेद होनेसें सम्मतिमें भेद होना एक स्वाभाविक बात है इसी तत्वका विचार करके की हमारे शास्त्रकारोने स्याद्वादका विषय स्थापित किया है और भिन्न २ नयोंके रहस्योंको समझाकर एकान्तवादक निरसन (खण्डन) किया है इसी नियमके अनुसार विना किसी पक्षपातके हम यह कह सकते हैं कि--जैन श्वेताम्बर कोन्फरन्सको श्रीमान श्री गुलाबचन्दजी ढहा एम. ओ. ने अकथनिय परिश्रम कर प्रथम फलोधी तीर्थमें स्थापित कियाथा इस सभाके स्थापित करनेसे उक्त महोदयका अभीष्ट (विचार) केवल जात्युन्नति देशोन्नति विद्या वृद्धि एकता प्रचार धर्मवृद्धि परस्पर सहानुभूति तथा कुरीति निवारण आदि होथा अब यह दूसरी बात है कि-सम्मतियोंके विभिन्न होनेसे सभा के सत्पथ पर किसी प्रकारका अवरोध होनेसे सभाके उदेश्य अब तक पूर्ण न हुए हो वा कम हुए हो परन्तु यह विषय सभाको दोषास्पद बनानेवाला नहीं हो सकता है पाठकगण समझ सकते हैं कि-सदुद्वेश्यसे सभाको स्थापित करनेवाला तो सर्वथा आदरणीय होता है इस लिये उक्त सच्चे वीर पुत्र को यदि सहस्रो धन्यवाद दिये जायें तो भी कम है परन्तु बुद्धिमान समझ सकते है कि-ऐसे बृहत् (बडे) कार्यमें अकेला पुरुष चाहे वह कैसाही उत्साही और वीर क्यों न हो क्या कर सकता है अर्थात् उसे दूसरोका आश्रय ढूँढनाही पडवा है बस इसी नियमके अनुसार यह बालिका सभा कतिपय मिथ्याभिमानी पुरुषोंको रक्षाके उदेश्यसे सौंपी गई अर्थात प्रथम कोन्फरन्स फलोधीमें हो कर दुसरी बम्बईमें हुई उसके कार्य वाहक प्रायः प्रथम तो गुजराती जन हुए इस परभी "कालमें अधिक मास" वाली कहावत चरितार्थ हुइ अर्थात उनको कुगुरुभोंने शुद्ध मार्गसे हटाकर विपरीत मार्गपर चला दीया इसका परिणाम यह हुआ कि वे अपने नित्यके पाठ करनेकेभी परमात्मा वीर के इस उदेश्यको कि-मिती मे सब्ब भूएसु बेर मज्झं न कणे इ॥ अथार्त मेरी सर्व भूतोंके साथ मैत्री है किसके साथ मेरा वैर (शत्रता) नहीं है मिथ्याभिमानी और कुगुरुओ
SR No.536507
Book TitleJain Shwetambar Conference Herald 1911 Book 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Dalichand Desai
PublisherJain Shwetambar Conference
Publication Year1911
Total Pages412
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Jain Shwetambar Conference Herald, & India
File Size9 MB
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