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________________ २७६ ] "" 71 "" " જૈન કેન્ફરન્સ હેરલ્ડ. ભગવતને પૂજે ભાવેરે, પાપ પુણ્ય સાથે આવેરે, સુરતાની સખીયેા આવેરે, જ્ઞાન ગાવરી પ્રિતે ગવેરે, लेख- नाथावाद असा जैन, रंगुन. 19 27 " (સપ્ટેમ્બર | "" जीवदया जैन सीरीझ. प्रिय भारत भूषण महाशयो ? आप अपने महर्षियोंके विचारो को उनके समीचीन वाक्यों को स्मर्ण करिये कि तमाम वेद पुराण यही पुकार २ कर कह रहे हैं कि अहिंसा अर्थात् जीवों की दया करना ही परम धर्म है, क्या जैन, शैव, आर्य्य, वेदानुपायी, ईशु, मुसल्मान, आदि सभी मतावलम्बी इस अहिंसा धर्म के अंग में तो सहमत हैं । प्रिय विद्वानो ? आप अपने वेद पुराणों के पत्रो का उलट कर देखिये, उसके उपर अपने नेत्रों को कुछ देर तक लगाइये, देखो वेदका क्या वाक्य है “अहिंसा परमोधर्म्म यतो धर्मस्ततो जयः " अर्थात् जीवों की रक्षा करना ही परम धर्म है, और जहां यह धर्म है वहीं सुख है, अतः हे महाशय वग्ग ? आप इसके उपर टुक ध्यान देकर विचार करो और सोचो और फिर वार २ सोचो कि तुम्हारे सुखिया बनने का उपाय ( कारण ) जीव दया ही है । और भी देखो कि कुराणशरीफ क्या फरमाते हैं कि “ बिस्मिला रहमान उल रहीम" अर्थात् दयालु दयाभण्डार खुदा के नामसे मैं आरम्भ करता हूं । इससे स्पष्ट विदित है कि परमेश्वर दयालु है । पस महाशयो जब परमेश्वर दयालु है तो आप भी सब जीवोंके ऊपर दया करो । महाशयो ? यह वही सबब था, यह जीवदया ही का महात्म था कि प्राचीन कालमें यह भारत मूमिधन, कंचन, करके परिपूर्ण भरी हुई थी और यह भारत भूमि रत्नागभों नाम से प्रसिद्ध थी, सर्वजीव निरन्तर सुखी रहते थे, कभी दुर्भिक्ष, महामारी हैजा, आदि बीमारियों का सामना नहीं पडता था, बाल मरण, युवा मरण स्वप्न में भी सुनने नहीं आते थे परन्तु ।
SR No.536507
Book TitleJain Shwetambar Conference Herald 1911 Book 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Dalichand Desai
PublisherJain Shwetambar Conference
Publication Year1911
Total Pages412
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Jain Shwetambar Conference Herald, & India
File Size9 MB
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