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________________ જૈન કેન્ફરન્સ હેરલ્ડ. || पंचम आतशबाजी ॥ यह भी एक अजब तमासा है पुंजी कों देखती आंखे खाक करना और हर्ष आनन्द मानना || हाय २ दया कर पुकारते है तो दया का है हिंसक कार्य तो करते जावें और अहिंसाका बदनाम करे प्यारे मित्रो ये बादुरी सात खेत्रो में करें तो कैसी खुशी हो ॥ || छठी अशब्द वाणी ॥ ये रीवाज भी शील धर्म को धब्बा देने वाला है -- मेरे जेसें प्रतीज्ञा भंग के दुष्ट फालगुनमें भंङ्ग पी छींङ्ग ले २ कर हर्ष मानते है । बैनो तो लग्नं प्रसंगे व इस रत्रुमें उच्चारण करें। ये रूडी उतम वर्गकों शोभा न दे मगर शरम दलाती है देखो कविने कहा है । शरमकों भी यापे शरम आया है जो बे शरम है वो न शरमाया है. ૧૦૮ [ येश्रीस | सातवा ऋश जीव हिंसा की चिजें । मसलन चरबी के साबुन मोमबती परोंके कामकी कोई वस्तु विदेशी सक्कर चर्मके पुटे लो चेनीके बरतन सिगरेट ईत्यादी डाकटरी दवा वगेरां इनका राजा हाथी दांत वगेरां द्रव्य शरीर दोनोका क्षय करता है । पवित्राई व सिद्धाई काँ है-है प्रिय मित्रो एसे २ नुक्षानकारक को रोकनेकि युक्ति करें परोपकारी पुर्षो के फरमानका तारीफ कर पास करें तो गुप्त रत्न प्रकट होना संभव है. || आठवा अन्य पर्व मिथ्यानामवरी ॥ अन्य दर्शनीय पर्व व असंभव गप्पमानना मानो ईस द्रष्टांत के है कल्प वृक्षकों छोड धतुरा सीखना जैसें चिन्तामनी रत्न दे काच लेना || गामवरी मैं के जगह है मगर यां तो उलट बात प्रचलीत है वो अर्ज है नुक्ता पतरमीनी में सैकडो व्यय करना दुखीयोंका दुख न समझना प्रेत भोजन करना इस रूढीकों सोचो तो सही हुई नामवरी या नही इसपे कविने कहा है.
SR No.536507
Book TitleJain Shwetambar Conference Herald 1911 Book 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Dalichand Desai
PublisherJain Shwetambar Conference
Publication Year1911
Total Pages412
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Jain Shwetambar Conference Herald, & India
File Size9 MB
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