SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 380
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ३०२] જૈન કોન્ફરન્સ હેરલ્ડ. २५४५२. गालिये गाना. हे श्रद्धावान पुत्र ? तुं अच्छी तरहसें जानता है. की वर्तमानके जैनियोंकी जितनी ओरते है, वीरपरमात्माकी पुत्रिया होनेका दावा रखती हैं; उन्हे कोई एकभी अपशब्द कहदे तो वे बहुत खिन्न होजाती हैं परन्तु जिस वख्तमें उनके घरपर व्याही वगेरा आनकर बैठते है उस वख्त कैसे २ खराब शब्द अपने मुंहमेंसें निकालती हैं जिनकोंकि सुनकर कइ पुरुष शर्मा जाते हैं. धिक्कार २ सहस्रवार धिक्कार उन बहिनोको जोकी गालिये गाना पसंद करती है. हे बुद्धिमान पुत्र ? औरभी बहोतसें ऐसे विषय हैं जिनकोंकी बर्चना अवश्य है परन्तु वख्त बहुत आगया और थोडा २ हाल अन्य माताओकाभी सुनना बाकी है वास्ते अन्तमें मै तुझे इतनाही कहना चाहती हुं की मुझ दुःखियाके अपरंपार दुःखपर खयाल रखना, मैः--बहुत अच्छा (इतना कहने के पश्चात् मैत्री माताको बहु मान देकर आशन दिया गया और द्वितीय "प्रमोद" मातासें पूछा गया की तुं भी किंचित् मात्र हाल कहकर सुनादे. तब वह बोली:-- प्रमोद--हे पुत्र, मैरा बहुतसा दुःख तो मैरी भगिनी मैत्री कह चुकी है परंतु जो बाकी रहाह सो मै तुझे कह सुनातीहुं, जरा लक्षपूर्वक सुनना. हे वत्स, मैरा नाम प्रमोद (हर्ष) होते हुवे भी लोग मुझे धारनतक नहीं करते. जिधर दृष्टि फेंको उधर सिवाय इर्षा के दूसरा नजर तक नहीं आता. हे भाई, जादे क्या कहूं? इस आपुसकी इर्षासे केवल मात्र कर्म बंधन होताहै. कई मेरे भाई आपुसमे झगड़े करके अपने आपको बड़े भाग्यशाली समझते है, परंतु अफसोस, वे लोक इतनाभी नहीं समझते पहिले बड़े २ आचार्योसे जबकी झगड़े ते नही हुवे तो आजकलके लोगोकी तो ताकत ही क्या. हे सुशील पुत्र, इन झगडोमे कुछ मोक्षमार्ग रक्स्वा हुया नहीहै. देख मोक्षमार्गका रस्ता तो शास्त्रकारोंने यह बतायाहै.
SR No.536506
Book TitleJain Shwetambar Conference Herald 1910 Book 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Dalichand Desai
PublisherJain Shwetambar Conference
Publication Year1910
Total Pages422
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Jain Shwetambar Conference Herald, & India
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy