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एक आश्चर्यजनक स्वप्न.
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गाथा.
सेयंबरोय आसंबरोय बुद्धोय अहव अन्नोवा । समभाव भावि अप्पा लआह मुक्खं न संदेहो ॥ १॥
(संब धसत्तरि गाथा २.) ___ अर्थ:-. चाह श्वेतांबर हो या दिगंबर हो, या बुद्ध हो या अन्य कोईभी हो, जो समता भाव भावेगा वह अवश्यमेव मोक्ष लेवेगा. ॥ १ ॥
तबतो निश्चय हो गया कि आपुसकी ईर्षा एकान्त कर्म बंधकी हेतुभूत है.
हे भाई, मोक्ष मार्गकी तुझे क्या कहुं चाहे तूं जैन धर्म के कितनेही फिरकोंमे फिरकर तलाश करले मगर आजकलका जमाना देखते हुवे सच्चे जैन धर्मके मुवाफिक बहुत थोडे लोगोका मोक्ष साधनमे उद्यम होगा. देख, श्री जिनदासजी अपने बनाये हुवे "पंथीडा" के स्तवनमे श्री वीर परमात्माको अर्ज करते हैं.
गाथा. श्वेताम्बर दीगम्बर आदि अनेक जो, निज २ मतिए गच्छागच्छ ठरायजो । एता पंथ छताए हुं न तृप्ती थयो , किण पंथए पहुंचूं आप कने सो सुणाय जो ॥१॥
पंथिडा संदेशो देजे मारा नाथने.
. अब जो कभी अज्ञानरूपी पर्देको दूर करके देखा जावे तो मालुम हो जावेगा कि मोक्षमार्गका रास्ता तो उपरोक्त मागधी भाषामे जो सम्बोधमत्तरिकी गाथा लिखी गई है उसीमे है. ..
हे गुणवान पुत्र, जब २ मे जैनियोमे ईर्षा देखती हुं तब २ सिवाय पछतानेक फुछभी हाथ नहीं लगता. अरे, कल्पतरु समान जैन धर्मके उपासकोकी यह दशा ? हाय, जमाना बहुत बुरा आगया.