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________________ જૈન કોન્ફરન્સ હેરલ્ડ. (જાન્યુઆરી फिरते २ ऊस शहर में आये ओर बाजार देखनेको निकले तो एक एक तर्फ गया. दुसरा दुसरी तर्फ उस मकानके दोनो तर्फ होकर ऊसमकानको देखते हुवे. आगे जाकर मिले और नगर शोभाकी चर्चा करते हुबे ऊस इमारतकी जिक्र करने लगे. तो एक बोला मकान हरे रंगसे रंगी है. दुसरा बोला नही लाल रंगसे रंगी है. ईसपर दोनो मुसाफिर जिदे. आर तकरार कर मारामारी करने लगे. पुलीसने दोनोको मजीस्ट्रटके सामने खडे कीये तो दोनोको दंड मिला अब सुज्ञजनोको विचारना चाहियेकी दोनो पुरुष सच्चे थे ओर नाहक कर समझके कारण मारा कुटी करके दन्ड पाये. इसी तरह याद रखना चाहिए कि हम गच्छोंके बहानेसे व्यर्थ लडकर धम्मोन्नतिमें धक्का लगाते हैं. क्या, इस्की सजा हमको न मिलेगी ! ला समझकर हमेशा सर्व एक मतके जैनबंधुओंने भ्रातृ भाव बढाकर तीनो वर्गकी उन्नतिका उपाय करो, ताकि भविस्यके सन्तानका सुधारा होकर उदय हो । अबमें कितनिक मुख्य २ सूचनाएं जाहिर करता हूं. . १ चारों जनरल सेक्रेटरी साहेबको उचित है कि, अपने हस्तगत विभागमें जहां २ प्रॉविन्सीयल सेक्रेटरी न हो वहां नियत करें, और प्रॉविन्सीयल सेक्रेटरी अपने २ प्रान्तमें डिस्ट्रीक्ट सेक्रेटरी कायम कर, उनके द्वारा स्थानीय सेक्रेटरी व सभा स्थापित करावे जिस्ले जैन पाठशाला आदि कॉन्फरंसके ठहराव सरलता पूर्वक पार पड सके, और यह कुल नाम हेरल्डके हर अंकके पृष्ठपर मुद्रित हुवा करें, जिससे सरलता पूर्वक कार्य हो सके. २ जो २ कार्रवाई हो बह हेरल्ड में हिन्दो व गुजराती दोनो भाषामें प्रसिद्धकी जाय जिस्से अधिक सुधारा होना संभव है ओर हरेक देशवासी उस्के ग्राहक बनकर लाभ उठा सके. ३ कॉन्फरन्सके वेठककी वक अपने जैनबंधुओंमेंसे धर्मविद्या तथा जाति सुधारे के लिए तनमन धनसे कोशिश कर उन्नतिकी होवेलेही धर्मशास्त्र, न्याय, नीति, व्याकरण आदि उच्च श्रेणीका अभ्यास किया हो, और उपदेश द्वारा कई प्रकारका लाभ पहुंचाया होतो उन्होंको योग्य जैन उपाधियां (पदवियां ) श्री संघकी तरफसे दनेकी पद्धति जारी की जाय, इस्ले आशा है कि उत्साह बढनेसे कई प्रकारका कार्य सूभिता पूर्वक हो सकेगा. ४ देखिये प्रतिवर्ष कितने संकोच विचारसे कान्फरन्सको आमंत्रण किया जाता है, इस वास्ते हरसाल हरेक तिर्थस्थलपर कान्फरन्सका जलसा हुवा करें, कुर्सी बगेराकी गोठवण न कर फर्शकी बेठक रक्खी जावे, इसके अतिरिक्त किसी शहरका संघ आमंत्रण करें तो ऐसेभी अच्छा है और ऐसेही प्रान्तिक कान्फरंसभी अपने २ प्रान्तमें भरी जाय जिससे सूमिता हो, हरतरहसे सुधारा होनेसे गरज है. ५ परमपूज्य आत्मार्थी मुाने महाराजोसेभी नम्रता पूर्वक प्रार्थना है कि आपकी प्रजा श्रावक वर्ग हैं, उनका हित चाहते हैं तो पूर्वीचार्योके माफिक मुनिवर्ग एक विचार और एक दिल होकर उच्च श्रेणीके विचारोंको उपदेश द्वारा श्रावकोंके दिलमें ठूस दोगे तबही इस महामंडलका उद्देश पूरा होकर उन्नति होगी.
SR No.536506
Book TitleJain Shwetambar Conference Herald 1910 Book 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Dalichand Desai
PublisherJain Shwetambar Conference
Publication Year1910
Total Pages422
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Jain Shwetambar Conference Herald, & India
File Size13 MB
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