________________
१८१०]
સચ્ચા સે મેરા.
ऐसा विचार कर आप बेलपर सवार होकर सिरपर गठा उठा लिया, भब देखिये वेलपर बोझ ज्यों का त्यों सिवाए उसकी गरदन व सिर हुःखे, तात्पर्य इस्का यह है कि जहां तक हम टाइम व पैसा खर्चकर अपनि धार्मिक, व्यवहारिक उन्नति न करेंगे वहां तक जितने जल्से हो चुके हैं यह उपरोक्त दृष्टान्तके माफिक है. क्यों कि जहांतक हरेक जैनि इस वातको कि हम दुसरे व कान्फरन्स दुसरी यह दिलसे हटाकर कान्फरन्स है वही हम हैं और हम हैं वही कान्फरन्स है ऐसा समझ लेंगे तवही सच्ची उन्नति हो सकेगी.
___ श्लोकः ५ चलन्ति तारा प्रचलन्तिमंदिरं चलन्ति मेरुरविचन्द्रपडलन्
कदापि काले पृथिवीचलन्ति सत्पुरुषवाक्यं न चलन्ति धर्मः ७ प्रिय बंधुओं ! अपनि प्रतिज्ञापर हमेशा तत्पर रहना चाहिए यानि जोजो प्रस्ताव समुदायके समक्ष पास किए हैं उसके अतिरिक्त किसिके मुलाहिजे व आलस्यमें न आकर अपने विचारोपर अटल रहना चाहिए. जिस्ले उच्च श्रेणीकी उन्नति प्राप्त हो । कितनेक साहब ऐसाभी फरमाते हैं कि, हमने प्रतिज्ञा कवको ! उन बन्धुओंको विचारना चाहिए कि अपने प्रतिनिधि (डेलिगेट ) व अग्रेसरोंने जन वर्गकी हिताकांक्षाके लिए जो विषय पास कर प्रतिज्ञाकी है वह हमनेहीकी है, इस बास्ते हमेशा उस्का पालन करना चाहिए, क्योंकि प्रतिज्ञाभंग करनेका शास्त्र में बहोत बड़ा दुषण बतलाया है. दृष्टान्त है कि एक चंडालिनीने मनुष्यकी खोपरीमें मांस पकाया और उस्को सिंगसे हिलाया जव खाने बेठी तो जल छांटकर चौका लगाया, तव किसीने पुछा कि तूं चोका क्यों देती है तेरेसेभी क्या कोई शेष अशौच है? उसने कहा मेरेसे अधिक दूषित प्रतिज्ञाभंग करनेवाला है शायद वह यहां आया हो इसही कारण यह जलसे भूमि सिंचती हूं.
श्लोकः ६ एक वर्ण यथा दुग्धं बहुवर्णासु धेनुषु तथा धर्मस्य वैचित्र्यं तत्वमेकं परं पुनः
श्लोकः ७ स्वयं कर्म करोत्यात्मा स्वयं तत्फलमानते
स्वयं भ्रमति संसारे स्वयं मोक्षश्चगच्छति एक अपनी उन्नतिन होनेका यहभी कारण है. कि अपनेमें गच्छादिकका झगड़ा विना मतलबका है क्यो के गच्छ नाम गणका याने गुरु समुदायका हे जुदे जुद गच्छकी जुदी जुदी समाचारी होते हुवेभी मतभेद नही अर्थात प्ररूपणा एक हे तो फीर निकम्मी लडाई क्यो लडना? जैसे की कीली नग्रमे एक इमारत दो दरवाजे वाली दोनो तर्फ दो रंगसे रंगी हुइथी. वहां कोई दो मुसाफीर साथही