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________________ शाभिः हिसा तथासांगी भातु लेना ठहराकर एक पचास वर्षके बुढके साथ उसके सगाई करदी. जब की उस ललडकी आलुम हुवा तो उसने बड़ा भारी अफसोस किया और बिचारते २ निश्चय किया पिताको ऐसे शब्द कह देना चाहिए कि जिससे मै इस दु:बसे बचजाउं. ऐसा बिचारक बहार के दालान में गई और उसके पिता जो कि पचास अदनीयें के साथ मे विवाह संबं बातें कर रह था तथा वहा ५००६पे गिन रहाथा, उनके पास जाकर मारवाडी भागमे वेली "पांन तो पहिले लीना, तीनसों की आती ! थें काकाजी भूलगया, मै तो हत्ती हजार की खोटा ख परख लेजो ! मै होउंला परर्क ! मै होवुला पारकी ! थां का नामने थें जावे ला नरकी. " हे भा', ये शब्द सुनते ही वह पि शरमा गया और पांचसौ रुपे पंछ लौटा दिये. हे वत्स, कितनेक गरीब लोग इस लिये रुने देते हैं कि उन्हें जती की रुसूम कर पडती है, जो कदाचित् ऐसाही हो तब तो अवश्यमेत्र इसमे पंचोंकोही भूल सम्झना चाहि पंच लोग यदि लड्डुओंकी तर्फ खयल नहीं देकर इस दुष्ट रिवाजको मेटना चाहें तो उन चाहिए कि गरिब लोगो के यहां मुफ्समे काम करवा देना. १८१३) हे भाई ! इस बात की कितनेक व्याख्या करूं यदि सच पूछे तो कन्याविक्रय कर वाले दुष्ट पुरुषों के यहांका अन्नजल लेना तक अपनेको नहीं कल्पता है. हाय २ कैर गजब ! क्या अबभी यह दुष्ट रिवाज हमारे अंदर मैजूद रहेगा ? हेश्वरी, आपने बहुत कुछ फरमाया अब इसके बध होने का मुख्य उपाय बताओ मैत्री - हे प्रिय पुत्र, यदि धनवन् अपनी लड केय को गरीबको देने लग ज और सर्व लोग जो अपनी बालाओं को बुढेकं साथ देना बंध कर दें तो यह दुष्ट रिवार आज बंध हो संक्ता है. मै-खरे बहुत हुवा अब दूसरा कुरिवाज फरम ईये. मैत्री - तूं सुन मैं वहती हूं: (r ધાર્મિક હિસાબ તપાસણી ખાતુ. अपूर्ण. જીલ્લે ગુજરાત શહેર અણુહીલવાડ પાટણ મધ્યે જોગીવાડામાં આવેલા ? શામળા પાર્શ્વનાથજીના દેરાસરજી તથા ટાળી ખાતાના વહીવટને લગતા રીપોટ મજકુર ખાતાના શ્રી સંઘ તરફથી વહીવટકર્તા શા. ડાહ્યાચંદે આલમચંદ હસ્ત કના સંવત ૧૯૫૯ થી સંવત ૧૯૬૩ ના આÀાવદ ૦)) સુધીના હીસાબ અમે એ તપ સ્યા, તે જોતાં વહીવટનું નામું રીતસર રાખી વહીવટ ચલાવવામાં આવે છે. મજકુ વીવટ સંવત ૧૯૪૯ ની સાલમાં ઉપરોક્ત વહીવટકર્તાના કમજામાં આવ્યા પ તેમણે પેાતાના કિમતી વખત રોકી પૂરેપૂરી શ્રમ લઈ ખાતુ સારી સ્થિતિમાં લા મૂકયુ છે તે માટે તેમને પૂરેપૂરા ધન્યવાદ ઘટે છે. આ ખાતુ તપાસી જે જે ખામીઓ દેખાણી તેને લગતુ સૂચનાપત્ર વહીવ કર્તા ગ્રહસ્થને આપેલ છે.
SR No.536506
Book TitleJain Shwetambar Conference Herald 1910 Book 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Dalichand Desai
PublisherJain Shwetambar Conference
Publication Year1910
Total Pages422
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Jain Shwetambar Conference Herald, & India
File Size13 MB
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