SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 260
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ जन प्रकाशक. मासिक पत्र. मूल्य वार्षिक शो इस समय पृथ्वीवर ६६ करोड ब ३२ करोड ईसाई और १५ करोड मुसलमान है, तुजेनी अधिक अवनति जैन का हो सकती दिगम्बरी, श्वेताम्बरी और स्थानकवासी जीना किसी प्रकारका नल नहीं, किसी भांतिका वाली नहीं, बल्कि आपल देव और कडाइ, सदा पृथ्वी की अन्य जातियों के मुकाबले जनजाति कोई जाति ही नहीं कही जा सकती है after पृथ्वीके लोग यह हीं कह है कि फूटकर कुछ मनुष्य पृथ्वीपर जैनी भी है. अन्य सब जातिये बहुत कुछ उन्नति कर रही है, परन्तु जैन जाति घोर नामें सो रही है यद्यपि अर्थी सम्प्रदायवालोने अपनी सावार पत्र भी जारी किये हैं, आर सकी है.. परन्तु ऐसे समाचार आज सम्मान सम्प्रदाय में जाग्रति करनेके लिये कुछ निःसंदेह समाचार पत्राके मही पत्रों के द्वारा क्या उन्नति होनी है। जो कही प्रदाय गीत गाते हाँ, यह ही कारण है कि जब जाति में अभी तक कोई उन्नति नहीं हुई है. धन्य " जैन यंग मेन्स एसोशिएशन आफ इन्डिया भारतवर्षीय जन शिक्षा प्रचारक कमिटि जयपुरको तिन पता करके जैन जाति बनाने और इसको उति शिवरपर चासो उठाया है. और इस ही कार्यकी सिद्धिक अर्थ अन प्रकाशक मासिक पत्र जारी किया श्री जिनेन्द्र के सभक, और जैन स्वताम्ब वा स्थानकवासी हो चाहे तेरह पत्रकार होना चाहिये और सर्व को दाना मा. सूरज भानु वकील, जैन जालिकी उन्नति माहनेनाली, नामके प्रेमियोंका चाहे वह दिगरी पंथी हो वा बीम, पंथ सबको इल • प्रकारसे इसकी सहायता करन देवबन्द जिला महरानपुर, सम्पादक વસ્તુ છે. જૈન કન્ફરન્સના ડેરા ઉપર અસ છીએ, પગાર લાયકાત अंडर ચાલુ સાલનું લગામ વગરના માટે શરૂ કરેલુ છે તા તે સ્વીકારી લેવા સાદા યંત્રનું ત २० ही ? और जैक के नये मी साव करोड हिंदु इससे મેથળ હીરછતી હું જન સેલર્સ, પાયધુની, दिन उपदेश ये प्रायधुनी-सुध भवना रमेटरी दूसर
SR No.536505
Book TitleJain Shwetambar Conference Herald 1909 Book 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Dalichand Desai
PublisherJain Shwetambar Conference
Publication Year1909
Total Pages438
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Jain Shwetambar Conference Herald, & India
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy