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________________ २न्स ३२६३ | श्रुभारी कारण विवाहादिके समय हम अपनी अमारी जाहर करनेके लिये करज लेकरभी खर्च करते है । नतीजा यह होता है कि दो चार दिनकी चांदनी बीत जातीहै और फिर अन्धियारी सामने आकर खडी होती है तब बचा कुचाभी हम अपनी इज्जत बचानेम खर्च कर टुकडे मांगने के लायक हो जाते हैं । अब सोचिये कया हम ऐसे रिवाजके पावंद होकर ऐसी दुर्दशामें गिरें? ऐसा रिवाजोको तो सर्बथा परित्याग करनाही योग्य है। बाललग्न । बचपनमें बिवाह देनेका रिवाजभी बहूत खराब है। आल ओलादकी तो कोन कहै , खुद पिता माता अर्थात् जिनकी बचपनमें शादी होतीहै , इस दुनियासे शीघ्र अवसर लेकर दुसरेको पधारते हैं । इसके सिवाय बचपनमें जिनकी शादी होतोह, वे दुनियवी कामामेभी उन्नति नहीं कर सकते । सब मा बाकी अवस्था तो ऐसी नहीं होतो कि बेटेके बालबच्चे होनेपर वे उनकी परवरिश कर सकते हों इस कारण उनके बेटेको विद्याभ्यास वगैरह छोडकर कम उम्र में पराई ताबेदारीके लिये फिरना पडताहै । अब सोचिये इस हालतपर उनकी कैसे उन्नात हो सकतीहै । हमको चाहिये कि जितना शोघ्र हो शके इस रिवाजको बन्द करें । नहीं तो दरिद्रता शीघ्र ही दरवा जे पर आ खडी होगी और जिनके पूर्व सुकृतमे इस भवमें किसी प्रकारका अभाव नहीहै एसे पिता माताका अपने बालबच्चाके विबाहक तर्फ ज्यादा ध्यान न देकर उन लोगोंके भविष्यत् जीवनकी उन्नतिको और लक्ष्य रखना चाहिये । उपयुक्त समयपर विबाह देनाही युक्तहै । अन्यथा उनके बालबच्चे कदापि सांसारिक उन्नति नहीं कर सकते । मैं अपने जातिका बडा संसार समझताहुं । कारण आज में जिधर निगाह फिरताहुं उसी और केवल साधम्मा भाइ बहन देख पडनेह । मैं यह समझताहु कि जो सांसारिक उन्नति कर सकताह वहही जातोय जीवनको उन्नत करनमें समर्थ हो सक्ताह मन बालबच्चाम रह कर सांसारिक हाल देखा है । कारण बालबच्चाको उन्नति के साथ साथ अपनो जातीय जीवनको उन्नति होताहै। जो लोग घरद्वारको ताक पर घर जातीय उन्नतिकी सत्ता अलग उपलब्धि करतेहैं उनको चौकन्ना करनेके लिये में एक पुरानी कहानीकी अवतारणा करता हूं । एक समय रातको एक ज्योतिषी शितागेको देखता हुया सडक परसे जा रहा था, देव संयोगसे उसी सडकके किनारे एक अन्धा कृवा था । ज्योतिषी अस्मानकी और ताकता जा रहा था, इस लिये वह कुवा उसके नजरोंमें न आया । वह उस कुबम जा गिरा कृवमें गिरकर वह अपनी जान बचाने के लिय चिल्लाने लगा। पासही एक किसानका मकान था । उस ज्योतिषाको आवाज सुनकर वह कृवक किनारे आया, एव उसने कृवम रस्मो डालकर ज्योतिषीको निकाला । किसानन उससे पुछा कि " क्या आपको कम दिखता है !' उस ज्योतिषीने कहा कि "हीं मेरी आंखे बरकरार है, परन्तुम सितारोंको देखता हुया जा रहा था. इस कारणसे कुवेको न देख सका । किसानने कहा कि “ जमिनपर कहां कौन चिज है यह तो आपको मालम ही नहो आप सितारों को गरदिश देखकर क्या किजीये गा । भाईयो ! यदि स्वजाति की उन्नति करना चाहते हो ता पहले अपने घर द्वारका समहाला। सिवाय बाल बच्चों की उन्नति किये कभी स्वजाति को उन्नति कर सकोगे । यदि हममे से हर एक अपने बालबच्चों को उन्नाते में काट बद्ध हो तो हमारी ओलाद आपसे आप उन्नति के उस उच्च शिखर पर आरोहण करेगी जहां हजारो चेष्ठा से पहोंचना हमारे लिये कठिन है।
SR No.536503
Book TitleJain Shwetambar Conference Herald 1907 Book 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGulabchand Dhadda
PublisherJain Shwetambar Conference
Publication Year1907
Total Pages428
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Jain Shwetambar Conference Herald, & India
File Size12 MB
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