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________________ १८०७ ] प्रमुखका भाषण. પપ परन्तु ऐसा रिवाज जो केवल एकही गांव तथा शहरमें प्रचलित नहीहै, बल्कि बहुत स्थानाम रायज है उनमें से दो चारोंका उल्लेख करना चाहता हुँ । मृत्यु पर छाति पिटना । मुसलमानोकी अमलदारीमें हमने उनके रिवाजोंका अनुकरण कियाथा । उनके कई रिवाज अभी तक हममें प्रचलित है । उनमेंसे विशेष हानिकारक रिवाज किसीसे मृत्यु पर छाती पीटनेका है । न मालूम इस बनावटी दुःख प्रकाश करनेसे क्या लाभ । क्या जो हमारी जातिके नही है और हमारी जातिके मनुष्यभी इस तमाशको देख कर मनही मनमें नही हंसते ? अपशोस है कि हम जिस्को जीते जी इज्जत किया करते थे मरने पर हम इस्तरहसे उनको मट्टी पलीद करतेहै । हाय हमारी कैसी गिरी दशा उपस्थित हुई है । जब तक हम ऐसी रिवाजको न रोकेगे तब तक हमारी उन्नती होना मुस्किल है। विवाहमें आतशबाजी और गणिकाका नाच. धर्मका नाश करनेवाला एक रिवाज हमारे यहां बहुत ही बुरा है । जीवदया हमारे धर्मका मुख्य साधन है परन्तु हमारी जाति ऐसी रिवाज प्रचलित है जो उस धर्मको नाश करता है । केवल क्षुद्र जीवोंके बचानेके लिये हमारे यहां रात्रि भोजन निषेध है । परन्तु अनुकरण को इच्छा हममें बलवती होने पर ही यह रिवाज प्रचलित हुया है । विवाह के समय अक्सर आतशबाजीकी व्यवस्था की जाती है अपने महापुरुषाम इतनी दयाथी कि वे औरोंकी जान बचाने तथा उपकार करनेमें कष्ट सहने पर भी तैयार थे। आर हस उनकी जगह दुसरोकी देखा देखी धर्माविरुद्ध कार्य करनेमें नहीं हिचकिचाते । यदि यह रिवाज शीघ्र हमारी जातिके जाता न रहा तो हम जैन कहलानेके योग्य ही नहीं हैं। हमने सूना है कि जोधपुरके भाइयोंने यह निश्चय कर लिया है कि वे अब विवाहमें आतश बाजिका प्रबंध न करेंगे । अब हमेंभी चाहिये कि उनका अनुकरण कर इस धम्नविरुद्ध रिवाजको बन्ध करें । उसही तरह पर विवाहके समय गणिकाका नाच कराकर श्रावकके उत्तम पसेको बरबाद किया जाता है । भांडोकी कुचेष्टामें शामिल होना पडता है । जो पैसा उत्तम काममें लगना चाहिये, वह उस अधमाधम गणिकाके काममें आता है । इसके सिवायऐसे उत्तम और माङ्गलिक विवाहके सत्य रण्डीका शामिल होनाही बुरा है । ऐसे समयपर तो सौभाग्यवती स्त्रीयोंका काम है न यह कि रण्डीका शामिल किया जावे? विवाहका मतलब ही यह है कि वरबधू जैनधर्मानुसार देशविरचित आचार पाल कर मुशिल रहे फिर वर या बधूके सामने खडा करके उसके हाव भाव कटाक्ष दिखला कर प्रथमसेही उनके दिलोंकी वृत्तिको खराब क्यों किया जावे ? विवाहादिमें फजुल खचे । आज हम लोगोंके चरित्रमें यह ख्याल कृट कृट भर दिया गया है कि लोगोके सामने हम अपनी अवस्थासे बढ कर बात बनाय । मौका आजाने पर हम अपनी ब. नाबदी अमीरीको साबित करनके लिये अवस्थासे अधिक खर्च कर डालते है। इसी
SR No.536503
Book TitleJain Shwetambar Conference Herald 1907 Book 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGulabchand Dhadda
PublisherJain Shwetambar Conference
Publication Year1907
Total Pages428
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Jain Shwetambar Conference Herald, & India
File Size12 MB
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