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________________ જેન કોન્ફરન્સ હેરલ્ડ. [ मा. दृष्टिसे आवश्यकता नहीं प्रर्तत होती, तथापि ऐसा कोई दिवस नहीं जाता होगा जिस दिन दोचार हजार बाईवल तथा उनकी स्थान स्थान पर व्याख्याके विज्ञापन न बट जाते हो दुरदर्शी इंगलेन्ड आदि देशोंकी अगरेज प्रजा तथा राजकीय वर्गके लोग इस बातकी भति भांनि अपने अंतःकरणमें जानते हैं कि हमारा जातियत्व हमारे धर्मकेही मल पर निर्भर है। जब इसका मल अश्रद्धादि द्वारा शिथिल हो जायगा तब खोट मतावलम्बिताको एकतारूपो एक सूत्र में गुथे हुये रहकर जो जो आनंद अनुभव कर रहे हैं, वह स्वामेभी हमको नहीं प्राप्त हो सकेगा । अतएव निज जन्मभूमि तथा भारत आदि देशोंमें बहुत अर्थ व्यय कर सर्वत्र वडे बडे उपदेशक नियत किये हैं; और प्राय संसार भरको सब भाषाओं में बाइबेलका अनुवाद होकर विना मूल्य या आति स्वल्प मूल्यपर वितरित होते है । क्या हमारे स्वेतांबर भ्रातृगणभी ऐसा करनेका साहस करेंगे? यह हमने किसी इसाई मित्रक मुखसे सुना है कि बाईबलका अनुवाद् अबतक २७२ भाषायोंमें हो चुका है और प्रति वर्ष दो चार भाषामें होताही जाता है । यह हमने माना कि हमारे समिप उतना व्यवसाय करनेकी सामर्थ नहीं है, तथापि यदि उद्यम करें तो बहुत कुछ करसकत है। जैन धर्मकी क्रमवार वांचन माला । ___ इसके साथही साथ बालकोंके धार्मिक शिक्षार्थ जैन धर्मकी क्रमवार वाचनमाला तैयार करनाभी अवश्यक है, और इस विषय पर उद्यमभी हो रहा है । सा तैयार ने हरएक स्कल मैं तथा पाठशाला वोडिंग वगैरमें बालकांक कलवाणीके अर्थ वहत उपयोगी होवेगा इसमें सदेह नहीं है । अब में उन वाचन मालायों के विषयों का कुछ कुछ उल्लेख करता है । आजकल हिन्दी, उर्दू, फारसी आदि में जितने वांचनमाला प्रचलित हैं उनमें हाथी, घोडा, गाय, बकरी आदिका बेयान रहता है । किमो ? में अगरेज महानुभवेंका जीवन चरित्र भी रहती है । परन्तु इस दशक बहुतम महागवाका नाम तक कोई नहीं जानता । अग रेजो ढग पर जो वाचन माला लिखे जान है उनके पढानसे नतीजा यह होता है कि हमारे बालक बचपनसेही अगरेजों को अनुकरण करना सिखते है जब बड होकर दुनयवी काम काजमें प्रवत होते है तब न तो ये अपने धर्मको भली भांति जानते है और न अपने महापुरुषोंसे सरोकार रखते है । हमारे वाचन मालायों में उत्कृष्ट श्रावक श्राविकायोंको जोवनचरित्र धर्मको छोटो छोटी नसीहते, तदा ऐसो कथायें जिसमें बिनय आदि गुणोका उल्लेग्य हो समावेश होना चाहिये। सेंटल जैन कालेजको आवश्यकता । जैन युवकोंके व्यवहारिक उच्च केलवणोके साथ धार्मिक उच्च शिक्षाके लाभार्थ एक सेंट्रल जैन कालेज होनेको आवश्यकता पर कुछ रोजसे चच्ची चलो रही है । अवश्य इसका उद्यम वहुत प्रशंसनीय है: लेकोन ऐसे उच्च शिक्षाको यथायोग्य प्रबंध करनेमें वहुत अर्थकी आवश्यकता है, कि जिसका एकत्रित होना हमारे न भाईयोंकी उदारतासे कुछ असंभव मालूम नाह होता : से कालेजको उन्नतिके वास्ते प्राथमिक फर्जियानके केलवणी तथा सेकेंडरि केलवणोका सम्पूर्ण रीतिसे प्रबंध करके ममाजको उन्नति करना जैन समुदायका प्रथम काम है.
SR No.536503
Book TitleJain Shwetambar Conference Herald 1907 Book 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGulabchand Dhadda
PublisherJain Shwetambar Conference
Publication Year1907
Total Pages428
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Jain Shwetambar Conference Herald, & India
File Size12 MB
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