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________________ २८१] જેન કોન્ફરન્સ હેરલ્ડ. [साटोस२ खांड जर्मनी, आस्ट्रीया, मोरीश्यश अने जावा विगेरे देशोमांथी आपणा देशमा आयात थाय छे, अने ते खांड बीटनां मूळीयां, बटाटा, गाजर, जारना सांठा, खजुर विगेरे पदार्थोमाथी रसायणिक प्रयोगनी मदद साथे बनाववामां आवे छे. अने ते बनावट आवी हलकी चीजोनी होवाथीज ते आपणा देशमां सोंधी वेचाय छे. जोके नामदार सरकारे आवी खांड उपर अमुक प्रकारनी जकात नांखी छे, परंतु ए जकातनो मार पोताना व्यापारीओने न सहन करवो पडे ते माटे लागता वळगता देशोनी सरकारोओ पोतपोताना व्यापारीओने अमुक रकमनो उचको आपी खांडना व्यापारने उत्तेजन आप्युं छे. आ के बीजो कोई व्यापार आपणा देशमां परदेशीओ चलावे जाय छे तेनुं कारण सरकारनी छुटापणानी राज्यनीतिज छे. जेथी आपणा देशमा मूळे तो व्यापार के हुन्नर उद्योगनी मंद स्थिति छे, तेमां परदेशी व्यापार उपर कोई पण जातनो अंकुश मुकाअल न होवाथी परदेशीओ फीवी जाय छे. आना लाधेज हालमां स्वदेशी हीलचाल जन्म पामी छे. तथा पहोचेला बंगाळीओ परदेशी मालने बहिष्कार करवान व्रत धारण करवा लाग्या छे. आपणो देश रसाळ छे, लाखो एकर ज़मीन शेरडी थवाना बरनी छे, नदीओ पण पुष्कळ छे, खेडुतो महेनतु अने करकसरीआ छे तथा महेनत सोंधी छे. छतां देशमा शेरडीन वावेतर प्रमाणमां थई शकतुं नथी. नहीतो आपणा देशमा शेरडीनी पेदाश एटली बधी थाय के एमाथी बनेली खांड आखा देशने पुरी पाडी शकाय. आ माटे राज्यनी मददनी जरूर छे. पण राज्य परदेशी होवाथी तथा बीजा कामोमां नाणानो व्यय थतो होवाथी आ उपयोगी तथा देशनी पहेली जरूरना कामतरफ तेनुं लक्ष जतुं नथी अने कदाच काईक करेछे तो ते नामनीज मदद जेवं होय छे. सौथी उत्तम खांड शेरडीमाथी थाय छे, अने तेनी खांड गळपणमां, स्वादमां, गुणमा अने बनावटमां श्रेष्ठ कही शकाय. जो के आ बनावट परदेशी खांडनी करतां काईक मोघी पडे तेम छे पण तेना गळपण आगळ परदेशी खांड फीकी पडती होवाथी " साप लांबो तो घो पहोळी” ए मीशाले “ सोंघु खावू ते मोंघाने माटेज" अर्थात परिणामे बन्ने खरचमां तो सरखीज थाय छे. परदेशी खांड बजारमां दुकाने दुकाने मळे छे. पण आ संबंधी हीलचाल थई नहोती ते पहेलां स्वदेशी खांडनां घणांओए दर्शन पण कर्या नहीं होय. उपर चोटीया लोकोन वलण हमेशां सस्ता तरफ जाय छे. परंतु विचारवंत अने करकसरना नियमोने जाणनारा कार्यदक्ष माणसो तो सस्ता करतां साराने शोधी तेनेज पसंद करे छे अने तेज खरी व्यवहारकुशळता कहेवाय छे. पण अफसोस ! आपणा देशनी कंगाळ स्थितिने लांधे लोकोमां वित्तनी विटंबणा पडेली होवाथी ज्यां त्यां निर्वाहने माटे थोडामा काम चलाववानी लाचारीमा
SR No.536503
Book TitleJain Shwetambar Conference Herald 1907 Book 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGulabchand Dhadda
PublisherJain Shwetambar Conference
Publication Year1907
Total Pages428
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Jain Shwetambar Conference Herald, & India
File Size12 MB
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