SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 33
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १८०७ રાય બહાદુર બાબુ શિતાબચંદજી નાર. २७ हमारी सभाकं प्रथम प्रसीडेंट है, दूसरी बम्बईकी कोनफरेन्सके समापति कलकता निवासी राय बदरीदासजी मुकीम वहादुरकी--कि जिनकी जैनधर्मको लागणी और इस समाजकी सामाजिक और धार्मिक उन्नति तरफ अथाग कोशिष और महनत सरको अच्छी तरह मालूम है - इस जगह हकीकत लिखना स्लूय के प्रकाशको दीपकके प्रकाशके मुवाफिक दिखलाना है. तौलरी कोनफरसके प्रभुस मुर्शिदाबाद निवासी राय वाबू बुद्धिसिंहजी दुधेडीया बहादुर घर्भसुस्त है. और कई जगह यात्रियों के आरामके वास्ते उनकी तरफ से धर्मशालाये बगरह बनवाइ गइ है पाटनकी चोथी महा सभाके प्रमुख बम्बइ निवासी शंठ वीरचंद जी दीपचंदजी सी. आइ. इ. जे. पी. की दयालुता ओर धर्मज्ञता सबको मालुम है.इन्हाने और इनकी सोभाग्यवति पलीने तन मन धनसे कोशिश करके श्री यशाविजय जैन पाठशाळा, बनारसको तरकीदाह और धर्म कृत्यमें लाखो रुपये खर्च कियेहे इनचारी प्रसिडेटाके धर्म कृत्यों पर नजर डालनेसे यहही मालुम होताहै कि इनकी पूर्ण पुन्याइके कारण कुल जैन संघने इनको अपना नायक बनाकर इनको अथाग इज्जत और आवरु बक्षीहै. - अमदावाद की कोन्फरन्सके लिये प्रमुख के चुननेमें वहांकी स्वागत कमिटीको बडी भारी दिकोत पडी. कलकत्ता निवासा वावू माधोलालजीने, कि जिनको पहिले पसंद कियाथा, किसी मुकद के सवबसे, प्रमुख पद धारण करनेकी दरखुवास्तको नामजुर किया स्वागत कमिटीम इस इनकारकी वजह से खलबलाट मचा और चारों तरफ उनकी द्रष्टी दोडने लगी आखिर कार उन्होंने अजीमगंज निवासी राय बावु शितावचंदजी नहार बहादुरसे प्रार्थना की तो उक्त बाबु साहयने अपने पाक और साफ दिलसे केवल संघ मक्तिकी गरजसे उन दरवुवारतको स्विकार किया. यद्यपी हमारे प्रमुख साहब के वायत हमारे सहचारीयोने मुखतलिक वृतांत प्रगट किये है कयोंकि लेखक के खयालात के मुवकिक लेख हातहि-तामी हमचाहतहकि हमार पाढक गण वस्फ उक्त बाबु साहबसे वाकिक होजावे कि जिसकी वजहसे हमने उनको अपना नायक बनाना पसंद किया है हम भली भांति कहरूकते हैं कि गत दुसरी तीसरी महा सभाओंके प्रसिडेंट बंगालकी तरफके होनसे उसकी नजीर लेकर हमने मिस्टर नहारको अपना प्रमुख नहीं किया है। उनको धावस्थाकै कारण उनको प्रमुख नहीं कियाह जस दसरा, तास। महा सभाका प्रमुख रायवहादुर थ उसहा नजारपर रायब दुर नहारको रायबहादुर हनिके कारण प्रमुख नहीं कियाहै; पिता रायबहादुर होते हुवे उनके जेष्ट पुत्रके रायवहादुरीकी इज्जत पाने की वजहसे हमने उनको प्रमुख नहीं कियाहै: जियादा सनतान होने की वजहसे हलने उनको प्रमुख नही कियाहै उनको जेष्ट पुत्रको उन्होंने यूरोपिअनोखे तालीम दिलवाइ इस कारण उनको यह माल नहीं दिया है उनके दुसरे आर चोथे पुत्रके ज्यूएटस होने के कारण उनको यह इज्जत नहीं दी गइहै; उनके या उनके पुत्रके आनरेरा मजिस्ट हानेकी वजहसे हमने अपनी समाजका इनसाफ उनके हाथमें नहीं दियाहः उनके जेष्ट पुत्रके म्यूनीसीपैलर्शके चेयरमैन होनेकी वजहसे हमने अपनी समाजकी सफाइका काम उनके हस्तगत नहीं कियाह; छोटे बडे लाटोकी स्वागत वगरहमें प्रवीण होने के कारणसे हमने अपनी कोमकी स्वागतका लाटोकी स्वागतका आधिकारी उनको नहीं किया है उनके जगत शेठसे कर पीढीयोसे सम्बन्धचले आनेकी वजहसे हमने जगत जैनसमाजका सम्बन्ध उनसे नही कियाहै; उनके नया मन्दिर बनवानकी वजहसे हमने अपने जैन समाजके मांदरको उनके सिपु. ई नही कियाहै: उनके बड़े भारी जमादार, सरदार, रइस होनेकी वजहसे हमने अपने महासभाकी जमीनको साफ करके ठीक तौर पर काश्त करानेके लिये उनकी निगरानीमें नही दियाहै; हमने उनके प्रमारबंशी क्षत्रि होनेके वजहसे हमारी समाजका मुहाफिज उनको मुकर्रर नही कियाहै; हमने उनके बुजुर्ग प्रेमरावजीके चकूरवर्तिका पद धारण करने या गढ खंबाजमें राज्य करनेकी वजहसे इनको अपनी समाजका
SR No.536503
Book TitleJain Shwetambar Conference Herald 1907 Book 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGulabchand Dhadda
PublisherJain Shwetambar Conference
Publication Year1907
Total Pages428
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Jain Shwetambar Conference Herald, & India
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy