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________________ २७२ ] જૈન કેન્ફરન્સ હેરલ્ડ. [स१२ प्रथम सेक्रेटरीनी नीमणुक अने तेओए शुं कार्य करवू जोइले तेने माटे योग्य निर्धार करवो. ए सर्वथी वधारे उपयोगी सवाल छे. अत्यार सुधी कोमना आगेवानो अने बहुधा शेठीआओने ते पद आपवामां आवे छे. आ पद्धतिमां सहज फेरफार थवानी जरुर लागे छे. सेक्रेटरीनी नीमणुक दरेक वरसे थवी जोइए अने ते थाय छे. पण 'तेमां काम न करनार नामो न जोइए. हालना नामोमां कोइपण सेक्रेटरीने दुःख लगाडवाना इरादा सिवाय कही शकाशे के सर्व एक सरखी रीते काम करनारा होता नथी. जो के रीतसर दरेक कोन्फरन्स वखते नीमणुक एक वरस माटेज करवामां आवे छे, पण चालु गृहस्थोने कायम करवामां आवता होवाथी नविन बुद्धिने क्षेत्र मळतुं नथी अने विकस्वर थवानो प्रसंग मळतो नथी. कंइ नहितो एक बे नविन माणसोने दरेक वखत चान्स आपको अने तेओनी शक्ति केवी छे ते जोवानो प्रसंग प्राप्त करवो ए वधारे डहापण भरेलु लागे छे. कोइपण काम जवाबदारी वगर बराबर अंशे थइ शकतुं नथी. कारणके ज्यांसुधी अमुक काम पोतानुं छे एवं भान नथीथतुं त्यां सुधी आ जीव अन्य व्यवसायमां पडी ते तरफ उपेक्षा राखे छे, अने तेम थवानुं कारण पण स्पष्ट छे. पोतानी फरजना शुद्ध ख्यालथी काम करनारा बहु थोडा होय छे, मोटो भाग क्वचित् गतानुगतिक, क्वचित् मान के द्रव्यथी कार्यनी किमत आंकतो अने क्वचित् अस्तव्यस्तपणे काम करनारो होय छे. जन समूहना मोटा भागनी प्रकृति सारी छे के खोटी ते पर विवेचन करवू अत्र अप्रस्तुत छे, परंतु ते जे छे ते ते छे एम विचारी तेनी साथे केवी रीते काम लेबु ते शोधी काठवाथी कार्य सिद्धि जलदी वहेली अने अल्प प्रय से थाय छे. आ प्रमाणे वस्तुस्थिति होवार्थी जेओने ते होदा आपवामां आवे छे तेओने तेना कार्यमां रस पडे छे अने केटलीकवार कर्तव्यना ख्यालथी अने केटलीकवार टीकाने पात्र थवाना भयथी अथवा कोइ अन्य कारणथी तेओ प्रयास करे छे. एकवार जेने ते जगापर मुकरर करवामां आवे छे ते कोमना भलाने अंगे विचार करतां शीख छे अने बीजे वरस कदाच तेनी जगोजे अन्य सदगृहस्थनी नीमणुक करवामां आवे तो पण ते कोन्फरन्सना दरेक कार्यमा रस ले छे अने विचार करे छे. वळी एकने एक सेक्रेटरीओने चालु रीते नीम्या करवा ते कोमना बीजा माणसोने अन्याय आपवा जेवू पण जणाय छे. - सेक्रेटरीओ हालमां चार जनरल अने चार आसीस्टन्ट राखवामां आप्या छे. आवडी मोटी संख्यामां सेक्रेटरीओ राखवाथी बहु लाभ नथी. कारण जवाबदारी तेथी बहुज वहें चायली रहे छे अने कार्यमां विलंब थवानो संभव पण बहु रहे छे. वळी दरेक स्थळ के प्रान्तमां केन्द्रनी जरुर छे ते भाटे आगळ प्रोवीन्शीयल सेक्रेटरीओ माटे योजना बताववामां आवशे.
SR No.536503
Book TitleJain Shwetambar Conference Herald 1907 Book 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGulabchand Dhadda
PublisherJain Shwetambar Conference
Publication Year1907
Total Pages428
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Jain Shwetambar Conference Herald, & India
File Size12 MB
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