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________________ -२न्स १२८३, [on-युमारी. मेवाडकी स्थिति. ____ बदनावरमें एक मन्दर पार्श्वनाथ स्वामीका है. यह पार्श्वनाथजीकी प्रतिमाजी १५४५ की है. बिगरफणकी वडी चमत्कारी है. सं. १९५५ की सालमें वडा भारी चमत्कार हुवा के यह प्रतिमाजीकी नारका खंडत होनेसे एक तर्क अपुजा करके कोई वक्त बिगदिये थे बो संवत् १९५६ की साल भादरवा सुदि ८ रातको आधी रातके समय मंदर बंध था सो एकदम खुलगया और वाजेगाजे ओर नृत्यगान होते हुवे वो प्रतिभाजी आकर मुल नायक दुसरे प्रतिमानी सो दोनो तर्फ हट गए ओर ये वीचमे विराजमान होगरे और नासीकाभी ठीक होगई. ये चमत्कार वहाके लोगोके बोहत अछा तरहसे देखा. अवभी उस मंदरमे चमत्कार अछा है उसी संदरले एक दिगम्बर प्रतिमा खडे कावसग पुरानी शामरंगकी हाथ ३५ आसरेकी ऊंची रखी हुई हे जरासी नासिका रखंडत हे इस गाममे पहलेके पुराने मंदरोके पथ्थर मकानोमे सडकमे घरोमे ओटलोमे कवरमे ओर अन्यान्य सर्व स्थलमे लगे हुवे है कोरणीदार कितनेक मुरतीसमेतभी है. ओर जमीनमे खोदनेसे वोही पथ्थर निकलता है मंदरके अंदरकी इंद्राणीके पथ्थर और गिजकके इन्दर पदमावती वगेराके निकलते है इस सहरसे बाहर एक पुरानी जैन यंदर है जिसमे अबूजीके मंदर जैसी कोरण हुई है बडाभारी मंदर है अभी उस मंदरमे विश्ववोने महादेव बेटा रखा है उस्ले एक पदमावतीजी मुरती भगवान सहित हाथ ? | ऊची श्याम पाशानकी रखी हुई है अस्पर वे खडे है जिसकी नकल में लाया हूं सो इस चिठीके साथ आपके देवनेको भेजा है. लोग यह जगेको तुरंगा नगरी होना बताते है. इस गाममे श्रावकके घर १०० आशरे है ये ता० २७ को वहा पोहचा लोगोसे बातचीत की और उनके ध्यानमे डिरेक्टरी करनाज चाया ऊसरोज वहां पर एके ओश्वालके नुक्ता था जिस्मे तमाम पर्गनेके लोग जीमनेको आयेथे जो उनकोभी समझाया पण उस पर्गनेका काईभी कोन्फ्रेन्सको नही जान्ता है. इस बजेसे कितनेक अछे २ लोगोकी प्रेरणाथी सभा की गई ता० २८ की सुभै १० बजे ओर श्रावकके करतव्योपर तथा कुलाचारपर सुधारनेपर तथा मूर्तिपूजापर तथा अच्छी स्थिति केसे आवे. त्या कन्याविक्रय बाल लग्नादिपर त्या कोनफ्रेन्स क्या है ईस विषयपर ठीक २॥ घंटेतक भाषण दिया ओर लोगोका दिल रंज किया जिस्पर कन्याविक्रयादिका ठेराव करना निश्चय कियागया लोगोने पूजादर्शनोका नियम किया ओर सर्व चोखरेवाले ने कोनफेन्समे प्रतिगाम दो दो चार चार आदपीको आनेके वास्ते मुझसे कहे के हम जरुर आवेगै इस माफिक बातचीत होकर करीव १ बजे सभा विसरजन हुई फिर वहांपर वकील राशनी नादिया करके है, वो मुझे मिले आरे-हिरेक्तरी समंधी बातचित हुई और
SR No.536503
Book TitleJain Shwetambar Conference Herald 1907 Book 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGulabchand Dhadda
PublisherJain Shwetambar Conference
Publication Year1907
Total Pages428
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Jain Shwetambar Conference Herald, & India
File Size12 MB
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