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________________ १९०६] - क्या श्वेताम्बर और दिगांबर जैन समाजमें संप हो सकता है ? ४५ • जब घरमें ही फूट हो तो दूसरेसे लडनेके. वास्ते कब सम्प होसकता है ? और खास करके उस हालतमें कि जब जहालत का बाजार गरम हो यवनोंके समयसे हमारी विद्या नष्ट हुई, ईर्षा, कषाय बढगई, खोटे रीति रिवाज जड पकड बैठे कि जिनसे इस न्याय सम्पन्न ब्रिटिश राज्यमें भी हमारा, छुटकारा पाना कठिन मालूम होता है. आजकलके नोशिक्षित जैनियोंका यह खयाल है कि इस कुसम्पकी जड बुढे कुपढ जैनी हैं जब उनका जौर हट जावेगा नई रोशनीके जवान जैनियोंका जमाना आवेगा दोनों सम्प्रदायोंमें सम्प होजावेगाइस बातके सुबूतमें आर्य समाजियोंके साथ जो मुकादमा चला और उसमें दोनों फिरकों के जैनियोंने जो इतफाक दिखलाया, पेश किया जाताहै. इस के सिवाय जैन यङ्ग मैन्स एसोसिएशन का खास मनशा यह ही है कि किसी तरह दोनों फिरकोमें इत्तफाक हो और हालके जमानेमें दोनों फिरकोंके महासभावोंके मुख्य सज्जनोंकाभी विचार इसही तरफ है. जाहिराबातोंसे उम्मेद होसकती है कि इनदोनों फिरकोमें बहुत जल्द इत्तफाकहो, परन्त अफसोस इस बातपर आता है कि लोगोंके दिखलाने के लिये तो हमारी कोशिश यह हो कि हम हित बढाना चाहें और खोनगी तौरपर एक दूसरे कि जड काटते हुवे दरेग नकरें. हमारी एसी दुरंगी विद्वतासे इकरंजी मूर्खता .अच्छी. ... पालीताणाके मईम ठाकुर साहेबने जूता पहने हुवे सिद्धगिरीपर चढकर जो पवित्र स्थानकी अशातनाकी वह दोनों फिरकों के मन को पूरा पूरा दुखानेवाली थी. इसही खयालसे जैनं गजेट के सम्पादक महाशयनें इसबारे में कुछ गवर्मेटसे ठाकुरसाहेब महमके खिलाफ अर्ज करनेकी तदबीर सोचीथी और श्वेताम्वरियोंके साथ हमददि दिखलाने का उपाय घडाथा परन्तु दूसरी तरफसे ठपका दिया गया और पाल ताणा के राजा के खिलाफ कारख़ाई करनेसे इस गरजसे रोका गया कि “ कृपासे है" और इसही कारण श्वेताम्बरियों का प्रयत्न दिगाम्वरी प्रतिमा और मन्दिर को अपने कबजेमें. करलेनेका “ निष्फल" गया. . जबकि इस तरहपर राजाओं की दिगाम्बरी है कि दोनों समाजमें . सम्प होजावेगा ? और क्याजवे एक प्रान्त के समजदार विद्वान् दिगाम्बरी श्रावक की तरफसे दूसरे प्रान्तके दिगाम्बरी श्रावक को श्वेताम्बरीयों के निसवत एसे २ बुरे शब्दोंमें सूचना दीजावे कि जिनको हम कागजपर । लाना मुनासिव नही समझते तो क्या यह उम्मेद हो सकती है कि इन दोनों समाजोंमें इस समय कुछ इतफाक हो सकता है ? . समजदारों के वास्ते इशारा काफी है. अगर दिगाम्बरी श्रावक समुदाय श्वेताम्बरी समुदाय के साथ इतफाक करना चाहती है तो हाथीके दांतों के बर्तावको छोडकर साफ दिलसे काम करें तो विचारे हुवे फलकी प्राप्ति हो सकति है. .
SR No.536502
Book TitleJain Shwetambar Conference Herald 1906 Book 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGulabchand Dhadda
PublisherJain Shwetambar Conference
Publication Year1906
Total Pages494
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Jain Shwetambar Conference Herald, & India
File Size13 MB
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