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________________ वृहत् टिप्पनिकामां नोधायला साहित्यना ग्रंथो. उतारो आपनार प्रो. रवजी देवराज. व्याकरण. स्वसमयी. कर्ता. श्लोक. रिमार्क. नाम. हेमाचार्य ११०० वर्ग १ लो. हैम व्याकरण १ व्याकरण सूत्र २ उणादि लिंगानुशासन ४ बृहद्वृत्ति २०० चतुष्क-आख्यात-तद्धित तथा कृदन्त. ५ वृहन्न्यास ८४००० पाद १1३।४।५।६/७/८1१२। तथा २७ नो. तेनी ग्रंथ संख्या टीपमां नथी आपी पण दंतकथाथी लखी छे. ५३००० ६ लघु न्यास ( शब्द महार्णव नामे ) रामचंद्रगणि ७ लघु न्यास धर्मधीषसूरि ८ परिभाष्यवृत्ति ९ न्यासोद्धार कनकप्रभ अठावीशमा पादनो लघुन्यास छे. १० कक्षापट्ट ११ बृहद्वृत्ति ढुंढिका बृहद्वृत्ति विषमद व्याख्या तुष्क-आख्यात-कृद् उपर पर काकळ कायस्थ १२ लघुवृत्ति १३ , दुढिका दीपिका पण कहेवाय छे. चतुष्क वृत्तिनी उपर " अबचुरि २२१३ १५ प्राकृत पादवृत्ति १६ दीपिका १७ प्राकृत रूपसिद्धि स्वोपज्ञ २४८५ द्विहरिभद्र सूरि १५०० मळधारि नरचंद्र. १६०० प्राकृत वृत्तिनी अवचूरि रूप प्राकृत प्रबोध वाच्य स्वोपज्ञ स्वोपज्ञ हेमाचार्य ३६८४ १८ उणादि वृत्ति १९ लिंगानुशासनवृत्ति २० धातुपारायण २१ न्यायवृत्ति २२ समासतद्धितसार प्रकरण २३ हैमविभ्रम सूत्र १७५ हैम संबंधी छे. पं. गुणचंद्र २४ वृत्ति २५ कारकसमुच्चय श्रीप्रभसूरि त्रण अधिकारवाळो प्राथमिक शीखा डुने शिखवा योग्य छे. बे अधिकार उपर करेल छे.सं.१६८० कुळ १९११२८
SR No.536502
Book TitleJain Shwetambar Conference Herald 1906 Book 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGulabchand Dhadda
PublisherJain Shwetambar Conference
Publication Year1906
Total Pages494
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Jain Shwetambar Conference Herald, & India
File Size13 MB
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