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________________ कन्याविक्रय संबंधमें प्रतिज्ञा. महाशय नमस्ते यहांपर कन्याविक्रयका विशेष प्रचार देखकर मेरे मन में यह बात पैदा हुई कि इस चित प्रथाके मिटानेका कुछ उद्योग करें. इसी अर्से में यहां पर श्रीयुत विद्याभूषण मुनि सिद्धिविजयजी और संपत्तिविजयजी महाराज पधार उनको देखकर मेरा मन बहुत प्रसन्न हुआ और आशा हुई कि उक्त मुनिमहाराज मेरे इस कार्यमें अवश्य सहायता करेंगे; ऐसा निश्चययुक्त विषयमें एक व्याख्यान बनाकर महाराजको सुनाया. धर्मात्मा मुनि बहुत प्रसन्न कर बोले कि, तुमने यह बहुत अच्छा विचार अब किया, इस व्याख्यानको सबके सामने आकर देना उस वक्त हम पुष्टी करेंगे. और वैसाही किया, और चलते वक्त कह भी गये कि, तुम इसका प्रयत्न करते रहना. यहांपर संपत्तिविजयजी महाराज चातुर्मास करेंगे. वह तुमको सहायता देते रहेंगे. उनकी आज्ञानुसार मैंने आसाड सुदी १३ के दिन उपासरें में जाकर फिर एक व्याख्यान दिया और उक्त महात्माने उसकी पुष्टी की तो भगवानकी कृपासे कई पुरुषोंने महाराज संपत्तिविजयजीसे सौगंद ली कि, अब हम कभी कन्याविक्रय न करेंगे. और सेठ हुकमचन्द कपूरचंदजी जो एक तड़के मुखिया हैं उन्होंने भी इतना तो कहा कि, हम विचार करेंगे. धार्मिक पुरुषों का मन धर्मकी ओर झुकता है. आप धार्मिक हैं और अपनी तड़के सरपंच भी हैं. फिर क्या अपने बड़पनकी ओर न देखेंगे ? अवश्य देखेंगे. और ईश्वरकी कृपासे अब शीघ्र विचारकर उक्त मुनिमहाराजके सामने कन्याविक्रय न करनेकी प्रतिज्ञा करेंगे, और अपनी तड़वालों को भी कराय ऐसी आशा है. अब उस महाशयोंकी नामावली लिखता हूं कि जिन्होंने कन्याविक्रय न करनेका दृढ संकल्प करके हस्ताक्षर भी दिये हैं उनको मैं धन्यवाद देता हूं. और आपसे चाहता हूं कि, जिसको सुनकर और लोगोंका भी मन इस ओर आकर्षित हो. उपदेशक - लूनकरन पन्नालाल नायब मास्टर, स्कूल राजगढ़, जैनी. नोट - ईसके नीचे हस्ताक्षर करनेवाले ३५ गृहस्थोंके नाम है जो स्थळसंकोचसे नहीं छापे जाते है.
SR No.536502
Book TitleJain Shwetambar Conference Herald 1906 Book 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGulabchand Dhadda
PublisherJain Shwetambar Conference
Publication Year1906
Total Pages494
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Jain Shwetambar Conference Herald, & India
File Size13 MB
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