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________________ जैन कॉम्फरम्स हरैल्ड. [ जनवरी बेदमुता व गुलाबचंदजी गिरधारीलालजी गांग करते हैं. उक्त सरदार धर्मके पुरे रागी और रुचि रखनेवाले हैं. अतिआनन्दका अवसर है की मुनीमहाराज श्री १००८ श्री चमनविजयजी महाराज विहार करते करते पधारे और एक मासतक ठेरकर धर्म उपदेश दिया और प्रगट कीयाके ग्राम पडासली कीतनी दूर है वहांपर पुराणा मंदीर और प्रतिमाजी हैं ऐसा सुनने में आया है सो मेरी इच्छा जात्रा करनेकी है तब उक्त महाशयो सहित श्री मुनी महाराजने अन्दाजन श्रावकों २५ सहित आनंद से चैत्रमास शुक्लपक्षमें जात्रा की. ग्राम पडासली नामसे प्रसिद्ध है (प्रगणा रामपुरा ) राज हुलकर सरकार इन्दोरका है यहांपर प्राचीन संप्रती राजाके वक्तका बनाहुवा मंदीर मोजुद है जीसमें श्री १००८ श्री तीर्थकर महाराज श्री ऋषभदेव स्वामी की प्रतिमाजी बीरसंमत ६८८ के सालकी प्रतिष्टा कीये हुवे विराजमान है. बीब अति मनोहर और चमत्कारिक है यहांपर पुजन हमेसासे एक ब्राहमण साधारण रितसे करताथा. पश्चात् उक्त मुनी महाराजने ईस तिर्थ की प्रथम जात्रा करके अपनी आत्माको बहोत प्रफुल्लित कीया और प्रगट कीया के यांपर हमेसा मेला होना चाहिये ऐसा विचार करके और तीन दीन मुकाम करके ग्राम रुनीजेकी तरफ विहार करगये तत्पश्चात मुनी महाराज श्री १००८ श्री तीर्थविजयजी व रामविजयजी प्रामानुग्राम विहार करके डगमें पधारे और ५ दीन मुकाम करके धर्म उपदेस देकर प्रगट कीया की मेने श्री 'पडासलीजी प्राचीन तिर्थ श्रवण करनेमे आया है सो मेरी भी इच्छा जात्रा करनेकी है और उस स्थानपर मेला कायम करनेकी इच्छा है तव उस वक्तमें सोहा गुलाबचंदजी 'गीरधरलालजी गांग के बहांपर बाईके बिवाहपर रुनीजा भानपूर गंगधार वगेराके श्रावक "महेमान आये थे वह सब श्रावक व उक्त ग्रामके सब श्रावक व्याख्यानमें मुजुदथे उसी वक्तमें सलाह होकर आसपास के ग्रामोंमे चीटीये देकर मीती आसाड वुद ४ की जात्रा का ठराव कीया और ईन्द्र धुवजभी तयार कराया और सामान वगैरे का इन्तजाममी ग्राम रुनीजाके श्रावकोने करना स्वीकार करके सब सामान इकठ्ठा करादिया था. ततपश्चात् मिती आसाड वुद २ को बीहार करके श्रीपडासलीजी पधारे. आसाड वुद ४ के ८ बजे उसवक्त उक्तमुनी महाराजने देरासरजीमें पधारकर दरशन कीये और ईस्तुति करके प्रगट कीया के जैसी मेने महेमा सुनी थी वैसीही तिर्थभूमी है. बादमें रात्रीमें आरतीभी आनंदसे हुई और बाद आसाड वुद ५ को ८ वजे तक कुलजात्री श्रावक श्राविका अंदाजन २००० के एकत्रीत होगये थे ऊसवक्तमें व्याख्यान व पुजनका आनंदमी अछा रहा और व्याख्यानमें समस्त श्रीसंघकी सलहासे मीति फालगुन सुदी. ५ का मेला हमेसा के लिये मुकर्रर करके “सब जात्रीकों प्रगट करदिया. बादमें श्रीजीकी भेट हुई और जलजात्राकी त्यारी कराई गई उसवक्तमे महात्मा हुकमीचंदजी महाराज को ग्राम पीपलीनसे सराबगीयोके मन्दीरकी लाई हुई सोनेकी पालखी व चांदीके चयर छडी सजाये गये थे. और पंचतीर्थीजीके प्रतिमा विराज
SR No.536502
Book TitleJain Shwetambar Conference Herald 1906 Book 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGulabchand Dhadda
PublisherJain Shwetambar Conference
Publication Year1906
Total Pages494
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Jain Shwetambar Conference Herald, & India
File Size13 MB
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