SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 197
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ९९०६ । अवायल ऊमरकी शादीकी खराबीया. १७२ 4 अब खयाल कीजियेके अबायल उमरमें शादी करनेसे कैसी कैसी खराबीयां पैदा हो गई है के जिसने हिन्दू धर्म्मकी बहोत सी आनेवालीनसलों का खातमा कर दीया अञ्चल तो लडकेका चाल चलन उसकी कमऊमरमें नही मालुम होसकता, अगर बिफरज एक लडके की शादी कर दी गई और उसका चाल चलन खराब है या किसी मर्जमें मुक्ता है तो उसकी ओरत तमाम उमरके वास्ते बजाय, ऐश व आरामके रंजमें मुबतला रहेगी. आप लोग रातदिन खुद देखते और सुनते है अगर हमारे किसी गरीब और ईमानदार भाईकी लडकीकी उमर बारा बरससे जायद होगई और वे मुफलिसी या और किसी खास - वजहसे उसकी शादी न कर सके तो दीगर ठोक उसपर ताने करते हैं और उसकी निसबत अपने दिलोंमें बुरे बुरे खयालात पैदा करते हैं बलके यह नही सोचते के औरत और -स्वाविंदका एक बहोत बडा और नाजुक रिस्ता है भगर इसमें किसी तरहका हर्ज या दूसरोंकी रायपर काम कीया जावे तो उसमें आखिरको बहोत बडे बडे नुकसानात और खराबीयां निकलती है अगर उनमें बाहम इत्तफाक न हुवा तो हमेशे के वास्ते रंजमें मुबतला डुबे और यह ऐसा रंज होता है के एक दूसरेसे जीतेजी जुदा सही हो सकता. जिन लडके लडकीयोंकी अवायल उमर में शादी कर दीजाती हैं वह अपने बालिग होनेसे पेश्तरही हम सोहबत्ती और हम बिस्तरीके लिये मजबूर कीये जाते हैं के जिसका नतीजा बहोतही खराब निकलता है क्योंकि अगर लडका तालिब इल्म है तो उसके लिखने पढनेमें फरक आजाता है. चलावे अर्जी उसकी डिमागी कुन्त्रतेंभी कमजोर होजाती है. बरखिलाफ उसके बाळदेनका की और ताकदबद होना ओलादके लिये उम्दा नतीजा पैदा करता है लेकिन वालदेन अबायल उमरमेंही ओलादके खुवाश्तगार होजाते हैं और यह नहीं खयाल करतेके अबल तो उनका नुतफा कायम नहीं रहता, अगर कायमभी रहा तो वह पैदा होनेसे पहलेही जाये हो जाता है. अगर जायेभी न हुवातो हमशे के लीये जबसेके बह पैदा होता है इकसाम इकसामके मरजेमि मुबतला रहता है. इसलीये हमारे भाईयोंकी ईसतरफ तबज्जे होना चाहिये के बह अवायल उमरमें शादी न करनेके रिवाज व रसमको कतई बंद कर देवें तो जो नुकसानात इस रसमसें पैदा होगये हैं और होते चले जाते हैं, दूर हो जावें और थोडेही अरसेमें हममें और नीज हमारी आयंदा नसलोंमें बोही दिलेरी और बहादुरी और हिम्मत पैदा होजाये के जिनको हम अपने बुजर्गों की तवारित्रों और किताबोंमें देखते है. और जिनको देखनेसे हमको हेरत मालुम होती है. मनमें इस लेखको खतम करताहूं, और तवज्जे दिलाताहूं कि हमारे भाई इसपर जरूर अमल करेंगे. और यह उम्मेदभी की जाती है के यह रिवाज भहिता माहिस्ता दुरस्ती पर आजावेगा, इति शुभम् महता अमृतसिंह, नाथद्वारा - (मेवाड ).
SR No.536502
Book TitleJain Shwetambar Conference Herald 1906 Book 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGulabchand Dhadda
PublisherJain Shwetambar Conference
Publication Year1906
Total Pages494
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Jain Shwetambar Conference Herald, & India
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy