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________________ १९०६] देलवाडामें पंडित पन्नालालका भाषण. १३५ गणधराः पाठकाश्चागमानाम् ॥ लोकेलोकेशवन्द्याः सकलयतिवराः साधुधर्माभिलीनाः पञ्चाप्येते सदाप्ताः विदधतु कुशलं विघ्ननाशं विधाय ॥ १ ॥ मङ्गलाचरण करनेके वाद-श्रीसंघसे प्रार्थना की गई के अहो भाग्य है के आज आपलोकोंका इस प्रतिष्ठा महोत्सवमें दर्शन हुवा है. जीर्ण पुस्तकोद्धार, जीर्ण मंदिरोद्धार, शिक्षण, जीवदया आदि बडे कामों में जो तन, मन, धन लगाते है, उनको धन्यवाद है. और कान्फरंसको धन्यवाद देना चाहिये के जिसके होनेसे उक्त कार्योंकी चारो तरफ उन्नति होरही है, और उनमे सेकडों रुपे खर्च होरहे हैं. हकीकतमे सोचा जावे तो कान्फरंसने प्रत्येक मनुष्य पर सालियाना चार आना लगाया है, और उसको आपलोकोंने देना स्वीकार करलिया है. देखिये, उसका उपयोग कैसे कैसे उत्तम कामोंमें होरहा है ये बुद्धिमत्ता विचारशीलता कान्फरंसकी है. मे आशा करताहूं के कान्फरंस होनेसे आपलोकोंको क्या २ लाभ होरहाहै और थोडे बरसके बाद इसका नतीजा कैसा होगा, वो अनिर्वचनीय है. हम लोक शासन देवतासे प्रार्थना करते हे के यह कान्फरंस सदा कायम रहो और इसके जो जो कर्तव्य हे पूरे होजा ओ. सो बंधुओ, स्वांतका पानी सीवमें पडनेसे अमूल्य मोती पेदा होताहै. ऐसे चार आना तछ है पर उसका विपरिणाम मोतिके समान हो रहाहै, और आप जानते है जीर्ण पुस्तकोद्धार जीर्णमंदिरोद्धार केळवणी जीवदया आदिमें जो आपका धन खर्च होताहै, उससे अनन्त गुण लाभ होताहै वास्ते देखा जाये तो लागा चार आनेका कमतर है परंतु ठीक है अभीतक आपलोककी बुद्धिमे कान्फरंसका कर्तव्य आया नहीं, वास्ते चार आना देनेमें भी कदाचित व्याकूलता होगी लेकिन मै जानताहूं के धर्म के काममे आपलोक कभी न हटेंगे. देखिये सजनो प्रथम तो मनुष्य शरीर पाना कठीन है. अगर मनुष्ययोनि मिल गई तो उत्तम जाति मिलना अति कठीन है, कदाचित् उत्तम जाति मिलगई तो . उत्तम कुल मिलना और कठीन है उसमे भी उत्तम धर्म मिलना सबसे मुशकिलहै सो हे मेरे प्रियबन्धुओ, शुभ कर्मके उदयसे मनुष्य शरीर, उत्तम जात, उत्तम कुल सबसे उत्तम वीतराग धर्म पाये हो सो मै समझताहूं के आपलोक बढ भागी और दर्शनीय होये सब सामान तो मिलगया, जैसे कोई आदमी रसोई करताहे आटा, दाल, निमक, मिरच, पानी, मसाला, आग ये तमाम चीजें होते हुवे अकेला करनेवाला नहीं है तो सब निरर्थक है ऐसे आपका कुल जाति धर्म नरभव इत्यादि होते हुवे धर्माचरण विगेरे सब निरर्थक हो जावेगा, ऐसा भी कहा गयाहै के गद्धेके ऊपर चंदन लाद दिया तो खाली चंदनका बोझका पात्र सुगंधका नहीं ऐसे जो ज्ञानी विद्वान है; अगर शास्त्रोक्त आचरण करता नहीं तो निरर्थक है; दवाईके नाम लेनेसे बिमारी नहीं हठ जाती खानेसे रोग दूर होता है; लडूके नामसे तृप्ति नहीं होती खानेसे होती है एसें हि वीतराग धर्मके नाम मात्रसे संसारका रोग दूर होता है. धर्म आचरण करेगें तो संसारकी बिमारी मिटकर मुक्ति मिल जावेगी, इस. वास्ते सज्जनों, ये धर्मरूपी चिन्तामणि रत्न हाथ लग
SR No.536502
Book TitleJain Shwetambar Conference Herald 1906 Book 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGulabchand Dhadda
PublisherJain Shwetambar Conference
Publication Year1906
Total Pages494
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Jain Shwetambar Conference Herald, & India
File Size13 MB
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