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________________ १९०६] ढुंढियोंके कथनसे मूर्तिपूजा सिद्ध होती है. • और आचार्य क्रियामें भी शिथिलंता हुई. भस्मग्रहका जोर हटनेसे लूंकाजी श्रावकनें शुद्ध धर्मका प्रचार किया जिसको बहूत काल हुवा." ( देखो जैनोदय पुस्तक १ अंक ६ पृष्ठ १११-११२) इस स्पीच को कुल हिन्दुस्थान के दुढिया समुदायके प्रतिनिधीयोंने मोरवीम इकठे होकर मंजुर किया है क्योंकि इस स्पीच पर किसीका आक्षेप देखने में नहीं आता है. इसलिये जिस स्पीचको संबने मंजूर किया उसकी पाबंदीभी सब पर लाजिम आवेगी. इस स्पीच के मुवाफिक श्रीमहावीर स्वामीसे सताईसवें पाटतक आचार्योंका आचार विचार शुद्ध रहा इस लिये अगर आचार्यों के समयमें जिन प्रतिमा मोजुद हो तो फिर सम्वेगी ढुंढिया दोनोंको जिन प्रतिमा मानना मुनासिव और जुरुरी होगा क्यों जिन आचार्योंकी क्रिया टुंढियोंके कोलसेही शुद्ध मानीजावे उनके समयमें जो प्रतिमाकी पूजा हुई हो तो फिर टुंढियाओंको जिन प्रतिमा उत्थापनेका मोकाही कहां रहा. और जियादातर बाद विवाद इन दोनों फिरकोंमें इस मूर्तिपूजाकेही बाबत होताहैं क्योंकि सिवाय इस एक कामके जितने ठहराव मोरवी कोन्फरन्समें हुवे हैं वह सब करीब करीब श्वेताम्बर कोन्फरन्सकी नकल हैं क्युं कि हमारे हुँठीया भाईओकी और हमारी सबकी राय यह है कि आपसमें कुसंप को छोडकर संपकी वृद्धि करना चाहीये इस लिये हमारी यह राय हैं कि पक्षपात को छोडकर संपकी बुद्धि करनेकी खातिर एक कमिशन निकला जावे जिसमें सम्वेगी मूर्तिपूजक और दुढिया दोनों शामिल होवे. यह कमिशन हिंदुस्थानके प्रसिद्ध तीर्थोपर तथा अन्य स्थलोंपर जाकर तहकीकात करे और उस तहकीकातसे अगर श्रीवीरभगवान के पश्चात सताईसवें पाटतक जिन प्रतिमाकी पूजा सावित होजावे तो कुल टुंढियाका समाज को चाहीये कि अबतक जिस मार्गमें वे चलरहे हैं उसको एक दम छोडकर मूर्तिपूजक हो जावें और अगर श्री महावीर स्वामीके पश्चात एक हजार वर्षतक मूर्तिका पूजना साबित न हो तो जो कथन राय सेठ चांदमलजीनें कहा है उसको सत्य मानकर सम्वेगी इनके साथ इत्तफाक करें. राय सेठ चांद मलजीके कथन को यथोचित आदर देते हुवे उसमें हम आपना विचार इस तरह प्रगट करने की आवश्यक्ता समजते हैं कि श्री महावीर स्वामी की राशीपर जो भस्मग्रह दो हजार वर्षका आया उसका असर कबसे लिया जावे. अगर श्री महाबीर स्वामीके मोक्ष पधारते ही उसका असर होना समझा जावे . जब तो जिन आचार्योंका एक हजार वर्ष.पर्यंत शुद्ध आचार कहा जाता है क्या उनपर उसका असर नही हुवा? अगर नही हुवा तो उस भस्मग्रहका असर एक हजार वर्ष पीछे समझ जावे तो भभीतक उसका असर चला आता है. परन्तु इसमें बाधा आती है. अगर उस भस्मग्रहका असर फोरन शुरू होगया तो उस हालतमें जिन आचार्यों की शुद्ध क्रिया मानी जाती है उसपर पाठक खुद्द विचार कर सकते है कि यह बात कहांतक ठीक हैं अगर इसके पश्चात
SR No.536502
Book TitleJain Shwetambar Conference Herald 1906 Book 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGulabchand Dhadda
PublisherJain Shwetambar Conference
Publication Year1906
Total Pages494
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Jain Shwetambar Conference Herald, & India
File Size13 MB
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