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________________ ११४ जैन का फरम्स हरेल्ड. . . . [ अपील उज्जेणमे बीजारोपण करके इस गाममें आया. आज तारीख पीछा उज्जेन जाता हुं. वहांका काम लिख कर पेश करूंगा. मैने तनख्वाह मास २ की साजापुरमेसे. शेठ जमुनादासजी जैन श्वेतांबरको भेजनेका लिखा था, उनके नामपर भेजदीहो तो ठीक नहीं तो उजनमें घमडसी जुहारमल की दुकान पर भेजने से मुझे मिलेगा. जैसा मुनासीबहो करों. अभीतक इस प्रान्तके लोक कान्फरन्स शब्दका अर्थ भी नहीं समझते है. उद्योग बलवान है दोचार मासबाद इस्का फल दीसेगा एसी आशाहै. . ___पं० पन्नालाल उपदेशक जैनश्वेताम्बर कान्फरन्स, . द. दलीचंदका द. देवीचंदका अभीतक मैरेपास दोसालकी रिपोर्ट की जिल्द द. नथमल घांसीलाल पोहोंची नहीं सो कृपा करे. इहांपर गांवके लोक बहुत जड थे उनमें भाषण दिया गया. उजेण--यह बहुत प्राचीन शहर है; इसमें मंदिरोंमें जो देखा गया तो कई प्रतिमा बडी प्राचीन है आदिनाथके मंदिरमें एक प्रतिमा है. उसपर संमत् १३४ का लिखा हुबा है. और चन्द्रप्रभुके मंदिरमें अजितनाथस्वामीकी प्रतिमा है. वा संमत् १५१८ के लेख संयुक्त है, और उसपर संग्रामसोनीका नाम लिखा हुवा है. और उसमें यह लिखा हुवा . है के वृहत्तपागच्छे श्रीरत्नसिंहसूरि पट्टे विजयमानं उदयवल्लभसूरिभिः प्रतिष्टितम् । यह वही संग्रामसोनी है जिसने मकसीजीमें पादुका स्थापन की हैं. मकसीजीका शिलालेख देखनेसे और भी युक्ति निकलेगा. ___ और इस गाममें मंदिर १५ हैं उनमे कितनेक मंदिरोकी संभाल चाहिये ऐसी नहीं है. श्री संघको भाषणद्वारा तथा खानगी विज्ञापन करा जावेगा. एक २ मंदिरकी देखरेख ढुंढिये मतके श्रावकोंके हाथमें है उनकी संभाल नहीं होकर आशातना होती है. और इहां श्रावकोंका धर्म ऊपर बराबर ध्यान नहीं है कारण के इहां मुनिराजोंका आना रहना सत्समागम होता नहीं ऐसे कई बातों की इहां न्यूनता होनेसे संघकी आज्ञा होके जितनी इहां न्यूनता होवे थोडे दिन रहकर साफ करना चाहिये. मुझे समय थोडा है. तोभी वैशाख वदी ८ तक रहूंगा. इसके बीचमें आसपासके गामोंमें दोरा करता रहूंगा. आसपासभी मोठे २ गाम है. - और इहांपर एक महिनेसें रत्नप्रकाश जैन पाठशाला निकली गई है लडके लडकी हालमें १७ है परीक्षाभी लीगई है. उसने मानमल ठीक है. उसने इन्दोर जैनशाळामें भी अभ्यास किया है आशा है के यह शाला ठीक चलेगा कारण के इसपर देखभाल मुनि मा. महिमाविजयजीकी है.
SR No.536502
Book TitleJain Shwetambar Conference Herald 1906 Book 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGulabchand Dhadda
PublisherJain Shwetambar Conference
Publication Year1906
Total Pages494
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Jain Shwetambar Conference Herald, & India
File Size13 MB
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