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॥ नमासिद्धेभ्यः॥
जैन श्वेताम्बर कोनफरन्स हरेल्ड.
पुस्तक १
जनवरी सन १९०५.
नम्बर १
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तीसरी जैन श्वेताम्बर कोनफरन्स. जैन श्वेताम्बर कोनफरन्स नामी बच्चेकों इस दुनियाकी रोशनी देखे हुवे दो बरस होकर तीसरा बरस शुरु होगया. इसके पैदा होनेका उत्सव मारवाडी आसोज (गुजराती भादवा ) वुदि ९ और १० मारवाडी सम्बत १९५९ में उस भूमीके "पवित्र स्थान श्री फलोधी पार्श्वनाथ के तीर्थपर हुवाथा कि जिस भूमीके ओश्या नग्रीमे हमारे बहुतसे बुजुर्ग (बडिल) मिथ्यात्वकों छोडकर पवित्र जैनधर्मकों अङ्गीकार करके ओसवाल हुवेथे और जहांसे कुल हिन्दुस्थानमें फैलकर जैनधर्मकी धर्मपताका मारवाड, मेवाड, गुजरात, काठियावाड, पंजाब, कच्छ-पूरब वगैरह मुल्कों में फरका रहे हैं. “घडा लारे ठीकरी और मायड लारे डीकरी" के कथनानुसार हमकों आशा होतीहै के हमारे बुजुर्गोने जिस तरह जय पाई उसही तरह बर्तमान और भविष्यत्कालमें यह पवित्र भूमीमें पैदा हुवा महानुभव जय पावेगा और समय पाकर वह वह कार्य करेगा के जो आश्चर्यकारी होंगे. इस बच्चेकी उत्पत्तिका उत्सव होनेके बाद मारवाडीयोंने अपने गुजरात, काठियावाड के स्वामी भाइयोंकी दरख्खास्त पर इस बच्चेको आयन्दा परवरिश करनेके लिये उनकी गोदमें देना मुनासिब समझा
और इसका दूसरा बार्षिकोत्सव का स्थान परम पवित्र श्री शत्रुञ्जय महातीर्थ करार पाया था, परन्तु अपने बचपनके बल और पराक्रमकी तरफ नजर डालकर इस परम पुरुषने चहा के इस तीर्थकी यात्रा कुछ ज्यादा शक्ति प्राप्त होने से किई जावै तो अच्छा होगा इसलिये श्रीजैनसंध और ठाकुर पालीताणामें खटपट के बहानेसे इसकी इच्छित भूमी मुम्बा पट्टनमें जा बिराजा और जिस धूमधाम के साथ मुम्बापुरी के सदगृहस्थोन इसका दूसरा वार्षिकोत्सव किया उसपर ज्यादा टीका करनेकी आवश्यकता नहीं है क्योंकि वह बात अब तक सब के दिलोंपर अच्छी तरह उकीरी हुई है. मुम्बापट्टनमे इस सत्पुरुषके प्रभावसे इस बातकों घडी घडी जाहर करने पर के चन्दा करनेकी आवश्यकता नहीं है. जैन समुदाय के उदार चित्तवाले हिंदुस्थानके पृथक पृथक बिभागोंसें आये हुये प्रतिनिधियों ने उस सुशोभित मण्डप के अन्दर दो घण्टे तक रुपयों की चिठियों की वह बोछाड बरसाई . के जिसको देखकर और सुनकर