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जैन कॉनफरन्स हरैल्ड.
[ जनवरी
प्रत्येक मनुष्य के मुखसें " धन्य है जैनधर्म और धन्य हैं इसके अनुयाई " की ध्वनि निकल रही थी -दो घण्टे के अन्दर येक लक्ष मुद्रा से उपर संख्या पहुचने सें सबकों सन्तोषके उपरान्त चमत्कारी बात मालुम हो रहीथी और जिस निर्विघ्न और सन्तोष के साथ पचरङ्गी पगडीवाले पांच हजार जैनियोंने मिलकर कार्यवाही की वह उस समयके अंगरेजी, गुजराती, हिन्दुस्थानी पत्रोंसें अच्छी तरह मालुम होसक्ती है यहां तकके मुम्बई हाइकोर्टके नामदार जसटिस चन्दावरकर साहबनें नेशनल कांग्रेससें भी इस जैन कोनफरन्स की कार्यवाही ज्यादा अच्छी और फतहमंद होनेकी राय प्रगट किईथी के जिससे हर सच्चे जैनीके दिलकों हर्ष उत्पन्न होकर उसको इस कोनफरन्स को तन मन धनसें मदत देनेकी उत्कण्ठा होनी चाहिये.
इस सत्पुरुषने अपनी पवित्र स्थितिका पहिला वर्ष पूर्ण होतेही चारो तरफ नजर डालकर बिचार किया कि इस समय विद्या अर्थात् केलवणीकी जैन समुदाय में कमी है और दु:कालोंके पडनेसें जैन समुदायकी स्थिति अच्छी नहीं रहीहै और परम पवित्र तीर्थोंमे तथा अन्य स्थानोमें पुज्यपाद तीर्थकरों की प्रतिमावों का तथा मन्दिरों का संरक्षण और सेवा जैसी के चाहिये वैसी नहीं होती है. केवली भगवानके कथन को पूर्वाचार्यैने शास्त्रद्वारा अमुल्य विरासत हमारे वास्ते छोडी है उसका अनुभव हमारी बेपरवाहीसे कमी आदि जन्तु कर रहे है. जीवात्मा सर्व समान होते हुये गूंगे प्राणियों कों जो पीडा पहुंचाई जाती है यह धर्माभिमानके बिरुद्ध है. खोटी खोटी रीतिरीवाज जो कई कारणोसें जैन समाज में प्रचलित हो गये हैं ये लोक परलोकमे हानिकारक हैं गरज कि इस इस तरह के उत्तम खयालात के साथ इस सत्पुरुषनें कुल जैन संघ की सहायताके नीचे इन कामों को चार बीर पुरुषोंके हाथमें मुख्य तोर पर और सर्व संघके हाथमें साधारण तौरपर सोंपा उन चार पुरुषोंमें से एक महाशय ने तो इस लोककों छोड परलोक का बीडा उठाया और जिस तरहपर मरुदेवी माता अपने पुत्र रिषभके पहिले शिवरमणीकों देखने पधारी वैसेही यहां की उन्नति बाकी रहे हुये अपने तीनों मित्रोपर छोडकर मिस्टर फकीरचन्द प्रेमचन्द जे. पी. कुल समुदाय को शोकजनक करके परलोक सिधाये उनकी जगह बीर पुरुष वीरचन्द दीपचन्द सी. आई. ई. मुकरर हुये इन चारों सेक्रेटेरियोंने नीचे मुताबिक काम और देश बांटे. -
नाम
सेठ बीरचन्द दीपचन्द सी. आई. ई, मुम्बई.
सेठ लालभाई दलप
तभाई, अहमदाबाद. बाबू रायकुमारसिंह,
कलकत्ता.
देश
सूरत मुम्बई तक दक्षिणखान्देश, बराड. गुजरात, पालीताणासें. सूरत तक, काठियावाड, कच्छ, बंगाल, पूरब, पंजाब
बरमा.
काम
जीवदया, निराश्रित को आश्रय. केलवणी.
जीर्णमन्दिरोद्वार.