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________________ १९०५] तीसरी जैन श्वेताम्बर कॉनफरन्स. . मिस्टर गुलाबचन्द ढढा राजपुताना, मालवा, मध्य जीर्णपुस्तकोद्धार. एम, ए. जयपुर. प्रान्त, मध्यहिंदुस्थान. चुनाचे इन चारो सेक्रिटेरियोनें तथा इन के साथ में प्रान्तिक सेक्रिटरियो ने जो जो काम किये और उपदेशकों ने जो काम किये उसका मुफस्सिल वृत्तान्त जो सालाना रीपोर्ट कोनफरन्स के चारों सेक्रेटरियों की तरफ से छपकर प्रगट हुई है उसमें दर्ज है यहां पर लिखने से पिष्टपेशन होगा परन्तु इतना लिखना उचित होगा के इस कोनफरन्स के जरयेसें वह वह कार्यवाही हुईहैं कि जो पृथक पृथक मनुष्योंसें या समाजासें होना असम्भव था, यथा, जैसलमेर भंडारका खुलना, जगह जगह मन्दिरोंकी मरम्मत्तका होना, जगह जगह पाठशालावो का व कन्या शालावों का खुलना तथा उनको मदद का मिलना, विद्यार्थियोंकों स्कालरशिप का मिलना, जीवदया और कुरि तयों तथा सुकृत भण्डार के लिये जगह जगह उपदेश होना, बहुतसी जगह कुरितियों का छूटना, सुकृत भण्डारका शुरु होना, जैन विवाह विधि अनुसार जैनियों में विवाह होना, और सबके उपर जैन समुदाय में एक सम्यका पैदा होना तथा इस कोनफरन्स द्वारा एक ताकतका कायम होना और सर्व जैनियों के दिलोंमें आल्हाद का उत्पन्न होना सबसे ज्यादा खुशीकी बात है. दूसरा वर्ष पूर्ण करके इस विराट ( महत् ) पुरुषने तीसरे वर्षमें कदम रखा उस समय विचार पूर्वक बजाय मारवाडी आसोज के मारवाडी मार्गशीर्ष में वार्षिको त्सव का होना मुनासिब समजा और प्रतिदिन इसकी क्रान्ती इस कदर बढती रही और इसका प्रभाव इस कदर असर डालनेवाला हुवा के बमुकाबले मुम्बई, बडोदा जैसे शहरमें के जहां पर श्रावक वर्ग विशेष नहीं है इसके उत्सवकी कार्यवाही में सैंकडों सदगृहस्थोने महिनों पहिलेसें अपने घरवारका सब धन्धा छोडकर मशगूल हुये और हरतरहसे इसके उत्सवकों धूम धामके साथ पार पटकने पर कटिबद्ध हुवे-जिन महाशयोंने कृपा करके इसके मण्डप वगैरेहकों देखा है उनकों अबतक अनुभव होगा के बडोदा महाराजके लक्ष्मीबिलास महलके आगे विशाल हवादार मैदानमें इस मण्डपकों खडा किया गयाथा के जहां पर बडे आलीशान दरवाजे की शोकज, जैन लाक्षणिक प्रदर्शनका दरसाव, झण्डे और ध्वजा पताकावोंका चारों तरफ फरकना, कई खेमोंका खडा होना, किटसन लाइटका प्रकाश, स्टेट बेंडका बजना, पोलिसका इन्तजाम वगैरह सब इस वक्त तक फिर फिर कर याद दिलाते हैं के हमारी उम्रमें हम हमेशा यह बात देखा करें. इन सब बातोंके उपर पांच हजार जैनियोंका बंगाल, पूरब, पञ्जाब, राजपुताना, गुजरात, कच्छ, काठियावाड, मध्यप्रान्त, दक्षिणसे आकर इत्तफाकके साथ इस कोनफरन्सकी कार्यवाहीकों भली प्रकारसें पार उतारना जैनियोंकी उत्तम हालतकों दिखला रहा था. महाराजा शियाजीराव, युवराज फतहसिंहरोव, महाराणी साहिबा और रियासतके दीवान वगैरहका इस जलसेंमें शामिल होना दोनों तरफको शोभा दे रहा था.
SR No.536501
Book TitleJain Shwetambar Conference Herald 1905 Book 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGulabchand Dhadda
PublisherJain Shwetambar Conference
Publication Year1905
Total Pages452
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Jain Shwetambar Conference Herald, & India
File Size13 MB
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