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________________ जैन कोनफरन्स हरैल्ड. [जनवरा तीन दिन तक कोनफरन्सकी धूम धाम रहकर प्रतिनिधि अपने अपने ठिकाने “पधारे और पांच सात दिनके बाद उस जगहपर कोई चिन्ह ऐसा नहीं रहाके जिससे एक नवीन देखनेवालेको मालुम हो सके के इस जगह एक हफते पहिले क्या कार्यवाही हुई थी. इस खयाल के साथही उन आक्षेपो परभी गोर करना वाजिब है कि जो आम तोरपर उन महाशयों से सुनने में आता है के जिनो नें या तो कोनफरन्सके हेतवोंकों अच्छी तरह समजा नहीं है या जिनकों कुदरती तोरपर इस शब्दसे नफरत है के "कोनफरन्स क्यों किई जाती है, इससे क्या फायदा है, सैंकडों हजारों कोसोंसे मनुष्य अपना अपना काम छोडकर क्यों इकठे होते है, हजारों लाखों रुपय्ये को साल दरसाल क्यों रेलके किराये वगैरहमें खोदेते हैं इस रुपय्ये कों किसी शुभ काममें ही क्यों नहीं लगाते हैं. अवतक तीन जलसें होगये कोनफरन्सने क्या कार्यवाही किई, क्या इन्तजाम किया, क्या बहादुरी किई ?" इन आक्षेपों पर पूरा गोर करके इनके दोनो तरफों पर ध्यान देकर विचार करना और उनके नफे नुकसान को सोचकर कार्यवाही करना हर महाशयका कर्तव्य है-अवल कोनफरन्स क्यों किई जाती है इससे क्या फायदा होता है ? इस सवाल कों विचारते हुवे इस बातका ध्यान रखना जरूरी है के यह कोनफरन्स किस की है और इस कोनफरन्स सें क्या नतीजा पैदा होता हैं ? इस का यह जबाब है कि यह कोनफरन्स जैन समुदायकी है के जिसमें जैन सम्प्रदायके चुने हुवे प्रतिनिधि एक जगह एक सालमें इकट्ठे होकर अपने धर्म और समाजके भले बुरे का खयाल करके सब की सम्मति से बुरी बात को अपनी समाज में से निकाल कर भली बात कों प्रचलित करने की कोशिश करते हैं और एक दूसरे के साथ मिलकर भ्रातृभाव बढाते है. ऐसी कोनफरन्स के न होनेसें एक दूसरे से मिलने का मोका न आने से आपस में हमदर्दी पैदा नही होती है. और हमदर्दीके पैदा न होनेसें इत्तफाक नहीं बढताहै. इत्तफाक के न बढ़ने में सामाजिक और धार्मिक उन्नति नहीं होती है और इस असार संसार में उच्चकुल में उत्पन्न होकर श्रेष्ट जैन धर्म को पाकर यदि अपने समाज और धर्म की उन्नति न किई तो ऐसी मनुष्य देह को धारण करना ही व्यर्थ है. पस प्रथम सवाल का जबाब मिल चुका के इस कोनफरन्स के इकट्ठे होनेसें सामाजिक और धार्मिक उन्नति होती है. दूसरा आक्षेप यह है के सैकडों हजारों कोसों से मनुष्य अपना अपना काम छोडकर क्यों आते है ? इसका यह जबाब है के मनुष्य अपने अपने काम छोडकर सैकडों हजारों कोस सिर्फ इस ही काम के वास्ते नहीं जाते हैं परन्तु केई सांसारीक और धार्मीक कामों में उनकों जाना पडता है. यह कोनफरन्स सांसारीक और धार्मीक सुधार के लिये है तो फिर यदि सजन लोग अपने अपने काम छोडकर अवश्य इस कोनफरन्स के लिये आवै तो इसमें आश्चर्य क्या है ? जहां जहां अपना सम्बन्ध होता है वहां वहां शादी गमी के मोके पर प्रत्येक मनुष्य को अपना अपना
SR No.536501
Book TitleJain Shwetambar Conference Herald 1905 Book 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGulabchand Dhadda
PublisherJain Shwetambar Conference
Publication Year1905
Total Pages452
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Jain Shwetambar Conference Herald, & India
File Size13 MB
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