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१९०५)
सम्पादकिय टिप्पणी राजपूतानामें जैन बिबाहविधि के मुवाफिक गत वर्ष में सिर्फ ४ लग्न हुवेथे. उनके
पश्चात राजपुताना में किसी जगह इस विधि के मुवाफिक सेठ सोभागमलजी
लग्न का होना नहीं पाया जाता है. हम को आशा थी कि दवा के पुत्रका लन जिस तरह धर्म कार्य में और कोनफरन्स की मदद में अजमेर निवासी राय बहादुर सेठ सोभागमलजी ढड्डा पूरा श्रम उठाते हैं उसही तरह अपने पुत्र कल्याणमलजी के बिबाह में उनका लग्न जैन बिबाह विधि के मुवाफिक कराते तो अन्य जैन गृहस्थों का भी होसला बढता. परन्तु हम को एसा समाचार मिला है कि उक्त सेठजी तो इस वात पर रजामंद थे परन्तु पुत्री के पितानें इस बात को स्वीकार नहीं किया इस कारण मजबूरी रही. तारातम्बोल की यात्रा की एक अद्भुत हकीकत पन्यासजी श्री कमलविजयजी की तरफ
से छपाई जाकर प्रगट की गई है. जाहरा यह हकीकत तारातम्वाल की यात्रा. "अरेबिअन नाईटस' की कहानीयों के अंदर दाखल करने के लायक मालुम देती है. हम को भी एक गृहस्थ की वहीमें से इसही तरह की इस से भी पुराने वक्त की हकीकत मिली है परन्तु इस के सच्चे होने का जबतक सुबूत न मिले एकदम इस को सही मानने में तामुल होता है. सुज्ञ जैन महाशयों को इसकी शोद्ध खोल करना उचित है. हम भी जहां तक मुमकिन होगा इस बारेमें कोशिश करेंगे. ___ मुनि श्रीकीर्ति चन्द्रजीके पधारनेसे मंदसोरमें श्रीऋषभ देवजीके मन्दिर का जीर्णो
द्धार कलशहेमालंकृत ध्वजादंडसहित स्थापन कर प्रतिमाजी मंदसोरमें उत्सव. विराजमान करनेका मुहूर्त चैत्र सुदि १३ का निकाला है. अडाइ महोत्सव के साथ प्रतिष्ठा होगी.
मालपुरामें जीर्णोद्धार-मालपुरामें जीर्णमंदिरोद्धार और दादाजी श्रीजिनकुशल सूरीजीकी निजधाम की मरम्मत का काम जारी है. यहांपर मुनिराजों के बिहारसे बहुत उपकार हुवा है. पहिले हेम मुनिजी महाराज पधारे थे अब जसमुनिजी महाराज विराजते हैं जैनि और वैश्नव व्याख्यान सुनकर ब्रत पच्काण करते हैं. राजपुताना के अंदर जयपुर राज्यमें मालपुरा एक प्राचीन जैन पुरी है, कि जिसमें
. पहिले २७ उपाश्रय थे और दादाजी श्रीकुशल सूरीजीकी मालपुराकी प्रतिमा धामभी यहांही है. परन्तु अब यहांपर श्रावकों के सिर्फ २० अन्य स्थल जासकती हैं.
घर हैं और सिर्फ २ मंदिर रह गये हैं कि जिनमें पाषाण के कइ मनोहर बिम्ब और सर्व धात की पंचतीर्थयां हैं अबतक यहां के श्रावकों का यह खयाल