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सम्पादकिय टिप्पणी.. साथ कोशिश करते रहे. जैसलमेर के महता रतनलालजी, बाफणा सगतमलजी, जिन्दाणी हरखचंदजी को भी हर वक्त इस बात पर के भंडार के न खुलने से कोनफरन्स को व्यर्थ खर्च भुगतना पड़ता है तवज्जह दिलाते रहे. जैसलमेर सर्किल के सैटैरी महता ज्ञानचंद्रजी को भी इसके बारे में हर वक्त लिखा गया. इसके सिवाय और कई जरियों से भंडार के खुलाने की तदबीरें होती रही. जिस तरह जैसलमेर के पंच देर करते रहे वैसेही हम ज्यादा सबर करते रहे जिसका नतीजा यह हुवा कि एक के पश्चात दूसरा पंच अपनी पूर्व ग्रहित हट को छोड कर कोनफरन्स के पुस्तकोद्धार के काम को अच्छा समझ कर भंडार खोलने की तरफ रजू हुवे परन्तु एक साधारण मनुष्यनें कई दिनों तक माथा उठाकर भंडार को नही खुलने दिया जिस कारण से आखिर कार जेसलमेर के संघनें तंग होकर दीवान साहब की सेवामें प्रार्थना की के हम तो कोनफरन्स के काम को अच्छा समझ कर भंडार खोलना चाहते हैं परन्तु जेठमल काछबा भंडार नहीं खोलने देता है और दंगा फसाद करता है इस लिये कोतवाली (पोलिस) के नाम बंदोबस्त रखनेका हुक्म हो जावे जिस पर दीवान साहबनें कि जो अव्वलसेही कोनफरन्स के इस काममें सहायक थे कोतवाल के नाम हुक्म लिख. कर दंगा फसाद का इन्तजाम करा दिया. इसका यह परिणाम हुवा के तारीख ६ अप्रैल को जैसलमेर का भंडार खुला गया और टीप का काम फिर बदस्तूर जारी हो गया है.
___इस खुश खबरी की मुबारकबादी सकल जैन समुदाय को देते हुवे हम इस बात को पुख्ता तोर पर जमाने का भोका लेते हैं कि हर काम के शुरू करते हुवे उस काम के प्रारंभ में दिक्कतें और साधारण तोर पर उस काम का नफा नुकसान एक दम तमाम आदमियों को मालूम नहीं हो सकता है. अच्छे और शुभ काममें अक्सर पहिले २ बिघ्न पडाही करते हैं. इस कुदरती कायदे से जैसलमेर कैसे बरी रह सकताथा. परन्तु अब हम आशा करते हैं कि जैसलमेर के संघ को पुस्तकोद्धार के फायदे अच्छी तरह से मालुम हो गये हैं और अब टीप के काममें और पुस्तकोद्धार के काममें कोइ बाधा नहीं आवेगी.
लीमडीमें प्राचीन पुस्तकोंका भंडार मोजूदहै. इस भंडारमें बहुतसे पुस्तक ताडपत्रपर
लिखे हुवे कहे जाते हैं. पुस्तकोंकी टीप पहिले हुई थी परन्तु हीमडीका भंडार.
- एसा सुना है कि वह टीप खोई गई. लीमडीका संघ इस बातको चाहता है कि कोनफरन्सकी तरफसे पंडित भेजकर वहांकी टीप कराई जावे इस लिये लीमडीके भंडारकी टीपका काम बहुत जल्द शुरू कराया जावेगा.