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जैन कोनफरन्स हरैल्ड. जैनी साधूमुनिराजों के बिहार की आवश्यकता.
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हिन्दुस्थान के बडे २ तीर्थ - समेत शिखर, पञ्चकल्याणक, हस्तिनागपुर, रिषभदेव, पार्श्वनाथ, आबू, तारङ्गा, भोयणी, गिरनार, सिद्धाचल, संखेश्वरा, थम्भण, ऐवन्ती, मक्षी, वगैरह-पूरब, पञ्जाब, राजपूताना, मालवा, गुजरात, दक्षिण कुल प्रान्तों में हैं और राजपूताना 'मालवामें छोटे २ गांवोंमें श्रावक संख्या ज्यादा है प्राचीन भव्यमन्दिर भी मौजूद हैं परन्तु
उपदेष्टावोंका बिहार न होनेसे धर्मका रहस्य उन लोगोंको मालूम नहीं होसकताहै और धर्मका यथोचित ज्ञान न होनेसे वे लोग धर्मकार्य जैसा के चाहिये नहीं करसकते हैं. बहुधा स्त्रियोंके अनभिज्ञ होनेसे ऐसे विलक्षण आचरण देखने में आये है के जिनका सुधारणा होना अत्यावयक है. मन्दिर दर्शन सेवा न करना, चैत्य वन्दन विधि न जानना, ठण्डी बासी रोटी वाना, अथाना आचार खाना, रात्री भोजन करना, कंदमूलका कुछ परहेज न होना, अभक्ष क्षणका त्याग न होना, करवाचोथका व्रत करके रात्रीको भोजन करना, मिथ्यात्वी देवों की नता करनी, मरे हुवे के पीछे नुकताका जीमण करणा, रोना कूटना वगैरह २ कुरीति वाजोंके ढेर से कुछ नमूनेके तोरपर यहां दर्ज किये गये हैं. ये सब बातें साधूमहाराज और साध्वियोंके जगह २ बिहार करके न पहुंचनेके कारणसे पाई जातीहैं. अगर राजपूताना,
लवा, पूरब, दक्षिण . वगैरहकी तरफ इन महात्मावोंका विहार हो तो कुल जैन समुदायको जायदा पहुंच सकताहै और साध्वियोंके उपदेशसे स्त्रियोंके सुधरनेसे जैनकोमकी तरक्की शीघ्रही वे सकतीहै. हमारी कुल साधु मण्डलसे नम्रता पूर्वक प्रार्थनाहै के गुजरात, काठियावाडसे पूरव, क्षिण, पञ्जाब, राजपूताना, मालवाके बडे छोटे गांवों में बिहार करके वहांके श्रावकोंके आच
को सुधारें और जहां २ मन्दिरोंमें सेवा पूजाका प्रबन्ध ठीक तोर पर नहीं है उपदेश कर पूरा २ बन्दोबस्त करावें. साधुमहाराजावोंमें अवल तो ज्ञानका बल होताहै; दूसरे उनके मैगी बैरागी होनेसे उनके उपदेशका असर ज्यादा होताहै; तीसरे उनको गुरु बुद्धिसे मानकी हालतमें उनके कथनको स्वीकार करना पडता है. जो काम सैकडों आदमियोंकी कोशसे पार नहीं पडता वह काम उनके उपदेशसे शीघ्र सिद्ध होताहै. दृष्टान्त तरीक जयके इलाकेमें मालपुरा नगरमें आजतक मुनियोंके न पधारनेसे वहांके समुदायको धर्मका पदेश यथोचित न मिलनेसे मन्दिरोंकी सेवा पूजाका जैसी कि चाहिये इन्तजाम नही था,
कार मन्त्रतकभी तो श्रावक समुदायको नहीं आताथा, देव गुरु और धर्मका तो बोध ताही कैसे? इस समय पुज्यश्री १०८ मोहनलालजी महाराजके शिष्य श्री हेममुनिजी
राजके इधर पधारने और धर्म कथा करनेसे जैनी और बैष्णवोंने कन्दमूल, अभक्ष, रात्री जिन वगैरहके नियम लियेहैं और कई श्रावकोंने नित्य प्रति मन्दिर पूजा करनेके नियम