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________________ १९०५] जैन जनरल काँग्रेस. . ४३ साफल्यता के साथ पार पटकने के लिये ज्यादा विचार और ज्यादा मनुष्यों की सम्मति की अत्यावश्यकता है. आज कल श्वेताम्बर दिगाम्बर समुदायों में महासभायें होने लगी है. दिगाम्बर समुदायमें " भारत वर्षीय महासभा " तथा जैन यङ्ग मेन्स एसोसिएशन आफ इन्डिया ( The Jain Young Men's Association of India ) के सालाना जलसे उत्तरी हिंन्दुस्थानमें होते हैं. और दक्षिणी दिगाम्बरीयों की कॉन्फरन्स दक्षिण में होती है. जैन श्वेताम्बर ) कॉनफरन्स के नाम से श्वेताम्बर सम्प्रदायके सालाना जलसे होते है, श्वेताम्बर सम्प्रदाय के दक्षिणी जैनियोंकी प्रान्तिक सभा अब होनेही वाली है. फिर• समझमें नहीं आ सकता है के इस कोंग्रेस के नाम से जो सभा किई जावेगी उसमें क्या अधिक्यता बिचारी गई है. जो २ सभायें दोनों सम्प्रदायकी होती चली आती है उस सब में धार्मिक तथा सांसारिक सुधारेकी ही चरचा होती है उन बातों पर ही सबका ध्यान खेंचा जाता है. अलबत्ता प्रान्तिक सभाओंकी यों आवश्यकता है के कोन्फरन्स की कार्यवाही को पृथक् २ प्रान्तम सभा करके प्रचलित किया जावे. परन्तु इस कोंग्रेस की इस समय आवश्यकता नहीं देखते है क्यौं कि थोडा मीठा अच्छा मालुम होता है. ज्यादा मीठा होने से गला सक जाता है और उस बस्तुसे अरुचि होजाती है. सम्प्रदायों की महासभाओं का पृथक् २ नामसे जल्द इकट्ठा होना असम्भव है. हम को सब तरफ गोर कर के काम करना उचित है. अभ श्वेताम्बर और दिगाम्बर कोनफरन्स के जलसों को हुवे सिर्फ दो तीन महिने गुजरे है औ कई महाशय अपने २ कार्योंसे मुशकिल छुटकारा पाकर उनमें शामिल हुवे हैं. अब द महिने के पीछेही वे सजन दूर २ की मुसाफरी उठाकर हमारे इस कोंग्रेस नामी सभा कैसे शामिल होसकते है ? खामगांवके भाईयों को जो कुछ बिचार प्रगट करना था खुशी। साथ बडोदा की कोनफरन्स में पधार कर खुद अथवा किसी के द्वारा करते कराते. हमा रायमें तो इस तरह की कोंग्रेस के होने से इस समय ज्यादा फायदा नजर नहीं आता है. इस कोंग्रेस के लिये अवल तो समय बहुत कम मिला. दूसरे मोसम ठीक नहीं लि, गया. तीसरे सब के अनुकूल स्थान नहीं मुकरर किया गया. चोथे दोनों सम्प्रदायके मख्य | गृहस्थों की सलाह लिये बिना इस काम का प्रारम्भ किया गया, पांचवें कोई खास विण ऐसा नहीं सोचा गया कि जिसकी चर्चा या तसफिया समुदाय की महासभाओंमें नहीं छ हो. गरज के हम जहांतक खयाल करते हैं इस समय ऐसी कोंग्रेस के होनेकी कोई आवश्यक नहीं समझते हैं न हम को यकीन हो सकता है के इस समय संख्यावंद श्वेताम्बर दिगाम आगेवान वहां पधार सकते है. हमारे बन्धुवर्गों से हमारी यह ही प्रार्थना है के इस गा प्रवाहको छोडकर पृथक २ उन्नति के मार्गोको अंगिकार करके जैन धर्म की प्रमावना का ठीक है. अबभी यदि इस बातपर विचार किया जाकर कार्यबाही किई जावे तो अच्छा होग
SR No.536501
Book TitleJain Shwetambar Conference Herald 1905 Book 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGulabchand Dhadda
PublisherJain Shwetambar Conference
Publication Year1905
Total Pages452
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Jain Shwetambar Conference Herald, & India
File Size13 MB
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