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________________ जैन कोनफरन्स हरैल्ड. [मार्च काशश किई गई परन्तु घरकी फूट के नुकसान का कुछ पार नहीं, हमारी अज्ञानता और जड बुद्धि की वजहसे जो २ नुकसान कुल समुदाय को पहुंच रहे हैं उन को कहांतक लिखा जावै ? अवल तो जितना आगम वगैरह का ज्ञान का प्रचार श्रीवीर परमात्मा के पश्चात् था वह नष्ट हुवा पीछे दुःकालों के पडने से हानि हुई, फिर श्रीदेवर्लीगणीक्षमा श्रमण सूरीजीने जिस ज्ञान को पुस्तकों में लिखवा कर बचाया उसमें से भी बहतसा नष्ट हुवा, जो शेष बचगया था उसमें कई तरह का नुकसान कम समझ पुस्तक लिखने वालों ने पहंचाया के जिसके सबबसे फरक पडा. इसके सिवाय जो २ पुस्तक जिस २ मनुष्य या समुदाय के पास रही व उनके ममत्व भावसे जहां पर रखे गये वहां ही प्रायः करके रहे. उदई वगैरहने उनको अच्छी तरह अवलोकन करके जैनियों के परिश्रमको कम कर दिया और इनसे भी जो कुछ बचा बचाया ज्ञान हाथ लगा उसमें भी अकसर प्रतियों के मूल पाठ वगैरहमें फरक मालूम देता है. कुल जैन समुदायने पुस्तकोद्धारकाभी खाता खोला है और प्रथम जैसलमेर भण्डार की टीप कराने का काम शुरू किया गया, परन्तु जैसलमेर के जैनी भाई अपने बचनपर कायम नहीं रहते हैं और अकसर भण्डार को बंध कर देते हैं और फिर खोले तो सिर्फ एक घण्टा दो घण्टातक काम करने देते है. जिस कारण से ज्यादा व्ययसे कम काम होता है, इस तरह पर प्रायः अन्य २ स्थलों के भण्डारोंका हाल है. इस कारण हमारे तृतीय कोनफरन्सकी आगतस्वागत कमिटी के चीफ सेक्रेटरी बडोदा निवासी शेठ माणकलाल घेलाभाई जोहरीने इस विषयपर अपना अप्रिप्राय इस तरह प्रगट किया है. . " हालमां जैसलमेरना भण्डारनी टीपy काम बंध पडयुं छे तेथी जीर्ण पुस्तकोद्धारर्नु कांई पण चालतुं नथी, एम कहेवामां खोलूं नथी. . धारोके जैसलमेरनो भण्डार खोलवामां आवे अने ए टीपy काम चाले तो पण जीर्ण पुस्तकोद्धारनी आजे रु. १५०००, रकम आपणा हाथमां खर्चवानी बाकी रहेशे. ___आपणां ४५ आगमो छे अने तेनी टीका, भाष्य, नियुक्ति, चुर्णी अने केटलाकना टबो पण लखायला छे. आ तमाम सूत्रो शुद्ध एक ठेकाणे मलवानुं साधन नथी. जैन धर्मनो मूल आधार आगमो उपर छे अने आ आगमोनी सरकार तरफथी छपाएली नकलो सिबाय बाबुसाहेब अने बीजाओए छपावेली नकलमां सेंकडो भूलो छे. आ बाबत इंग्रेज लेखकोए पण आपणी भूल बतावी छे. तेथी आपणी कॉन्फरन्स तरफथी आगमोनी प्रतो जुदे २ स्थलोएथी मंगावी तेमांथी इंग्रेजी रीत प्रमाणे एक शुद्ध प्रत विद्वानो पासे | तैयार करावी ते कोई मुनि महाराज पासे वंचावी पछी तेनी कपडा उपर (ट्रेसींग पेपर
SR No.536501
Book TitleJain Shwetambar Conference Herald 1905 Book 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGulabchand Dhadda
PublisherJain Shwetambar Conference
Publication Year1905
Total Pages452
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Jain Shwetambar Conference Herald, & India
File Size13 MB
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