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श्री आगमोद्धार.. श्री आगमोद्धार.
इस पञ्चम काल म परम तीर्थङ्कर श्रीमन्महाबीर स्वामी के मोक्ष पधारने के पश्चात् भव्य जीवों के लिये उनकी प्रतिमा तथा उनकी आगमारूढ बाणी आधार भूत हैं. प्रतिमा के दरशन से साक्षात् वह स्वरूप याद आता है के जिस के साधन से अनेक भव्य जीव माक्ष को प्राप्त हुवे हैं. इस कारण जिनप्रतिमा और उनके बिराजने के स्थान अर्थात् मन्दिरों का रक्षण करना कुल जैन समुदायका मुख्य कर्तव्य है. इसही खयाल से जीर्ण मन्दिरोद्धारका खाता कोनफरन्स में खोला गया है. तथा अन्य सद्गृहस्थ भी यथाशक्ति रुपय्या लगाकर जीर्ण मन्दिरोद्धार कराते हैं परंतु अबतक किसी प्रबन्ध का उस पूर्ण रीतिसे होना ज्ञात नहीं होता है के जिस से यह विश्वास हो जावे कि जिस कदर जैन मन्दिर हिन्दुस्थान में हैं उनका उद्धार जरूरत के समय अवश्य होता ही रहेगा इस विषय में उचित स्थानपर चर्चा चलाई जावेगी. इस समय हमारा बिचार यह है के हमारे परमोपकारी शासन नायक बीर परमात्मा की बाणी जो गणधरों द्वारा आगमारूढ हो कर हम को अमूल्य विरासत के तोरपर मिली है और जिसका एक अक्षर भी कम ज्यादा होजावे तो फिर बहुत परिश्रम करने से भी ऊसकी कमी दूर नहीं हो सकती है यह बिरासत अच्छी स्थितिमें बनी रहै तो उसके रक्षणसे हमको और हमारे वारिसोंको तथा अन्य दरशनिको बडा भारी फायदा पहुच सकता है. यह बात सब सज्जनुं को अच्छी तरह मालुम है के बीर परमात्मा के निर्वाण के पीछे उनके पदधारियों को उनके बचन कण्ठस्थ रहते थे इस कारण उस समय पुस्तकों के लिखने लिखाने की आवश्यकता नहीं थी परन्तु जैसे २ काल के प्रभावसे इसके महातम्यमें कभी आती गई, मनुष्यों की बुद्धि कम होती गई और बारा २ बरष के दुःकालों के पडने से कई साधु महात्मा परलोक सिधारे. बाकी जो रहे उनको समय के दोषसे कुल परम्परा से चली आई परिपाटीके अनुसार पूरा ज्ञानका कंठस्थ रहना मुशकिल होगया; इस कारण दो दफा साधु मुनिराजोंका समागम होकर जो २ बातें उन सबको यादथी उनको एक जगह इकट्ठी किई और इन को बल्लभी और माथुरी वांचना के नाम से प्रगट करनेमें आया. बीर परमात्मा के ९८० वर्ष पश्चात् श्रीदेवीगर्णाक्षमा श्रमण सूरीजीने इस बाणी को पुस्तकारूढ किया और जबहीसे परमात्मा की बाणी पुस्तक द्वारा प्रचलित हुई.
समयमें हमेशा फेरफार हुवा करता है. उसका असर धर्म परभी जरूर पडता है. हिन्दुस्थानमें आपसकी लडाई, षट्दर्शनोमें बिरोघ वगैरह से कईबार हरधर्म की पुस्तकों पर तथा मूर्तियोंपर आपत्ति आई है. और सैंकडों तथा हजारों पुस्तकें नष्ट होगई हैं कि जिनसे धर्म को पूरी हानि पहुंची है. इस नुकसान को तो सहन करके फिर धर्म मार्गमें प्रवर्तने की