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________________ १९०५] श्री फलोधी तीर्यको व्यवस्था. ६. झाड, हांडी, फानोशके मुंहपर जो पहिले रोशनी के समय कपडा नहीं लगाया जात था अब कपडा लगाकर जीवोंकी जयण की गई है. ७. श्री पार्श्वनाथ स्वामिके पात पहिले हरवक्त पीलसोतके ऊपर खुला दीपक जला करता था अब दोनों तरफ लाल टेने लगादी हैं कि जिससे जीवोंकी रक्षा होती है. श्री शान्तीनाथजी के मन्दिरके कोटकी मरम्मत और मन्दिरकी सफेदीका काम होगया है. ९ रसीदें छपाली नई हैं. इन शुभ कार्यवाहीयों के वास्ते "श्री फलोवी तार्योन्नत्ति सभा" और मेडताके संघको धन्यवाद दिया जाता है परन्तु नीचे लिखी हुई बातोंपर इन दोनोंका ध्यान रखेंचना मुनासिब समझकर उम्पीद करते हैं कि इन बातोंका भी बहुत जल्द इन्तजाम किया जावेगा: १ काचके काममें जो तीर्थकरोंकी छबियां चित्राई गई हैं मोटी कलमकी हैं आयंदा ऐसी छवियां बारिक कलमकी खूब सूरत और मनोहर होना चाहिये. . २ बीतरागके मन्दिर सरागी श्रीकृष्ण और गोपियोंके कुतूहलकी या अन्यस्त्रियोंकी छारियां जो काचके काममें चित्री गई हैं बेमोका और नामुनासिब है आर्यदा इसका पूरा खयाल रहे. ३.रंग और सभामंडपके अंदर रंग रोपेयरका काम उत्सबके समयसे पहिले पहिले होजाना चाहिये. ४ जो अढाई द्वीप और अष्टापदनीके बडे पट्ट कोटडीयोंमें हैं, और उनको यात्रि लेम केशरके छांटोंसे खराब कर डालते हैं उनपर काच चढादिये जावें. ५ सेवग लोगोंको जो सेवा पूजाका काम करते हैं पूजाकी विधि और विवेक सिख. लाया जावे. ६ जिसतरह अन्य जैन तीर्थोपर कई खाते होते हैं और वहांके कारकुन यात्रियोंको सब खाते दिखलाकर हर खातेमें रकम भरवाते हैं उसही तरह इस तीर्थ परभी साधारण बगरह कई खाते होना उचित है और इस मन्दिरके मैनेजरको हिदायत होना वाजिब है कि वह मेहनत और तन देही करके यात्रियोंमें सब खातोंसें रकम भरवाया करे. इस तरह कार्यवाही करनेसे जो रकम मन्दिरके भंडारकी इसवक्त साधारण खातेमें लगरही है वह आसानी के साथ अदाहो जावेगी. . गत वर्षमें जो सज्जन हिसाबकी जांच परताल करके रीपोर्ट पेश करनेके कस्ते नियत हुवे हैं और अबतक फुरसत न होनेके कारण नियमित समयपर हिसाबको नही देखसके हैं उनका फर्ज है कि अब शीवही हिसाब की जांच परताल करके उनको इस पत्र द्वारा प्रगट करें.
SR No.536501
Book TitleJain Shwetambar Conference Herald 1905 Book 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGulabchand Dhadda
PublisherJain Shwetambar Conference
Publication Year1905
Total Pages452
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Jain Shwetambar Conference Herald, & India
File Size13 MB
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