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________________ १९०५] श्री फलोधी तीर्थपर कोनफरन्सके कर्तव्योंके विषयमें भाषण. ३५९ है. कोनफरनसके अंदर हम और हमारे अंदर कोनफरन्स है; एक दूसरेसे अतिरिक्त हरगिज कायम नहीं रह सकता है; जैसे धके अंदर मखन, अग्नीके अंदर उष्णता, हिमके अंदर शीत, पतिव्रता स्त्रीके अंदर शील उसही तरह जैन समाजके अंदर जैन श्वेताम्बर कोनफरन्स है. कुल अंगोपांग मिलकर शरीर कहलाता है उसही तरह कुल समदायके महासभाका नाम कोनफरन्स है. जैसे शरीरके अंदर जटा खूराकको पचाकर शरीरके कुल हिस्सोंको पुष्ट करती है और शरीरके कुल हिस्से महनत करके पेटका भरण पोषण करते है इसही तरह कुल समुदाय मिलकर इस कोनफरन्सकी तरकीके उपाय तन मन धनले सोचते हैं और कोनफरन्स अपनी तरफसे उन सबको पुष्ट करनेमें कमर बांधे तय्यार रहती है. किसी महाशयको यदि यह खयाल पैदा होंकि हम कोनफरन्सके मातहत नहीं हैं या कोनफरन्सके कर्तव्य हमको मंजूर नहीं है तो यह खयाल उनका हरगिज दुरुस्त नहीं है क्योंकि इसमें अकसरी · और मातहतीका बिलकुल कामही नहीं है। जैसा ऊपर कहा गया है हमसे अतिरिक्त कोनफरन्स नहीं है. यह कोनफरन्स तीन बर्ष हुवे जब इसही तीर्य भूमीपर इसही दिन पैदा हुई है और कुल जैन समाजके हितको बढोनवाली हुई है. कुल समान इस पवित्र भूमीको, इस अपूर्व तीर्थको, इस शुभ दिनको और इस पुन्यवान सभाको बहुतही प्यारकी निघासे देखेंगे. श्री पार्थ प्रभूकी कृपासे यह कोनफरन्स हमेशा तरकी पाती रहेगी और थोडेही समयमें इसके उत्तम कामोंका नतीजा अछी तरह मालूम होजावेगा. इसकी उत्पत्तिका सम्बन्ध मारवाडसे होनेके कारण मारवाडी भाईयोंका फर्ज हैकि इसकी तरकीके लिये हरतरह कोशिश करें. . . फलोवीके पश्चात् इस कोनफरन्सका दूसरा जलसा बम्बई में हुवा और बम्बई निवाती जैनियोंके अथाह परिश्रमसे इस जलसेको कामयाबी हासल हुई, वह देखने वालेही जान सकते हैं शवोंभे वर्णन करनेकी सामर्थ नहीं है. उस समय विद्याप्रचार, निराश्रिताश्रय, जीर्ण मन्दिरोध्यार, जीर्ण पुस्तकोव्धार और जीवदयाके खाने एकलाख मुद्राले अधिक का चंदा हुवा और चार जनरल सेक्रेटरी मुकर्रर किये जाकर उनकी सलाह और निगुरानीले सब खातों में रुपया खर्च करना करार पाया. इसके पश्चात् बडोदामें तीसरा जलसा हुवाकि जिसको बोश निवासी जैनियोंने और बडोदा नरेश और युवराजने अथाह परिश्रम उठाकर फतहमंद किया. जैन नुमायशभी इस कोनफरन्सके साथ बडोदामें हईथी कि जिसमें जैन धर्मके उपकरण वगरह दिखलाये गयेथे. अब इस. महासभाका चोथा वार्षिकोत्सव पाटनमें होनेवाला है उसमें भी आपलोग जुरूर शामिल हावे. जो जो काम इस कोनफरन्सने किये हैं वह सब उसके मलिक पत्र "हरल्ड के देखनेसे मालम हो सकते हैं.
SR No.536501
Book TitleJain Shwetambar Conference Herald 1905 Book 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGulabchand Dhadda
PublisherJain Shwetambar Conference
Publication Year1905
Total Pages452
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Jain Shwetambar Conference Herald, & India
File Size13 MB
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