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________________ ३५८ नैन कोनफरन्स हरेल्ड. [ नवंबर श्री फलोधी तीर्थपर कोनफरन्सके कर्तव्योंके विषयमें नापरा, ( हमारे प्रतिनिधिकी तरफसे.) मारवाडमें श्री फलोधी पार्श्वनाथजी महाराजका तीर्थ मेडता रोड स्टेशनपर है,---. . यहां पर मारवाडी आसोज बूद्दि ९ और १० को प्रायः करके राजपूतानाका संघ इकठा होकर महोत्सव करता है. इस साल बारिशकी कमी रहनेसे और ठीक वक्त पर बारिश न होनेसे यह खयाल थाकि शायद यात्री कम आवें परन्तु इस तीर्थका ऐसा चमत्कार है कि इस सालभी हजारों यात्री पधारेथे. उत्सवके दोनों दिन श.मके वक्त सभा हुई कि जिसमें हजारों मनुष्य मोजूदथे उनके समक्ष आसोज वुदि ९ की सभामेंतो कोन्फरन्सके कर्तव्योंपर भाषण दिया गया के जिसको सुनकर सब लोग संतुष्ट हुए. वक्ताने अपने भाषणको शुरु करते हुवे प्रकट कियाकि सबसे पहिले कोनफरन्स शब्दका अर्थ बतलाना बहुतही जुरुरी हे क्योंकि शब्दार्थके ठ.क तोरपर मालुम न होनेसे अक्सर धोका हो जाताहै और प्रीतिकी जगह अप्रीति पैदा हो जातीहै. कोनफरन्सके मानि दो जियादा मनुष्योंका किसी विषयपर विचार करनेकेहैं. जहांपर हजारों और लाखों मनुष्यों के सम्बन्धमें विचार चलाना होतो उन कुल मनुयोंका इकठा होना असंभव और नामुनासिब होजाता है इस लिये उनकी तरफसे कार्यवाही इस तरहपर होती है कि पृथक २ शहरों और गांवोंका समुदाय अपने २ शहर और गांवमें पच्चायति सभा करके अपनी तरफसे दोचार या कम जियादा विश्वास पात्र प्रतिनिधि चुनते हैं और उनको उस महा सभामें शामिल होकर अपने तरफसे विचार प्रगट करनेका और वहांपर जो बात करार पावे उसको मंजूर करनेका अखतियार दिया जाताहै. जिस समुदायका प्रतिनिधि जो बात महासभा मंजूर करता है वह बात उस प्रतिनिधिकी कुल समुदायको कुबूल और मंजूर होती है. जैन श्वेताम्बर कोनफरन्समें हिन्दुस्थानके हरेक प्रान्तके समुदायकी तरफसे प्रतिनिवि पधारकर जो जो बातें जैन धर्म और समाजकी उन्नतिके वास्ते विचार पूर्वक ते करते हैं वह कुल बातें भारत बर्षिय जैन समाजको कुबूल और मंजूर होती है. इस कथनसे आपको मालुम हो सकताहै कि कोनफरन्स कोई हाथी बोडा या भयानक देव दानव नहीं है, न कोनफरन्ससे किसीका बिगाड करने का मनशा है बल्कि कोनफरन्स कुल जैन समाजकी एक महा सभा है जिसमें कुल समाजके समजदार, दयावान, धर्मवान, बुद्धिमान, विद्यावान, धनाडय विश्वासपात्र प्रतिनिधि शामिल होकर धर्म और समुदायकी उन्नतिके प्रस्ताव करते हैं. अगर किसी महाशयको यह खयाल होकि कोनफरन्स कुछ और त्रिम है और हम उससे भिन्न हैं तो यह उनका खयाल वे बुनियाद और सुधारेके काबिल
SR No.536501
Book TitleJain Shwetambar Conference Herald 1905 Book 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGulabchand Dhadda
PublisherJain Shwetambar Conference
Publication Year1905
Total Pages452
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Jain Shwetambar Conference Herald, & India
File Size13 MB
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