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________________ जैन कोनफरन्स हरैण्ड, [ नमबर कई मनुष्यों को यह खपाल है कि यह कोनकरन्स आनकलके नव लिशित लोगों की तरफसे नया प्रचार है और जो नई बातहै वह नई होने के कारण माननीय नहीं है परन्तु ऐसे सजनोंको आलानी के साथ समझाया जासकता है कि कोनफरन्सकी हमारे समानमें नई प्रवृत्ति नहीं है किन्तु पुराने जमानेसे ही इसका प्रचार चला आता है. अलवता समयानुसार सूरत शकलमें जुरूर फरक आजाता है परन्तु इससे चीनकी असलियतमें फरक नहीं आसकता है. छरी पालकर जो यात्रा गमनका शास्त्राने हुकम है उसका मतलब यहही है कि जब यात्रा निमित्त संघ इकठा होगा तो उसमें पृथक २ शहरों और गांवों के श्रावक श्राविका शामिल होंगे और उनमें परस्पर प्रीति बढेगी और जहांसे वह संघ पैदल रस्ते रवाना होकर तीर्थभूभिपर पहुंचेगा उसके अनन्तर जितने छोटे बड़े गांव आगे उन सब गांवोके संघ, मन्दिर, उपाश्रय, धर्मशाला, पुस्तक भंडार, पाठशाला, कन्याशाला, वगरहके साथ उस संघका परिचय होगा और परस्पर प्रीति बढकर सुधारेका काम हाथमें लिया जावेगा; आपसके हालात मालूम होनेसे अपनी स्थितिके उन्नतिका रस्ता पकडा जावेगा. पहिले रेल वगरहके आसान जरीये आमदरक्त न होनेसे पृथक २ गांवोंके संघों की मुलाकात तीर्थ यात्राके समय होतीथी अब रेलोंके चलजानेसे कुल समाजके प्रतिनिधि आसानीके साथ एक जगह इकठे होकर सुधारे बधारका विचार करते हैं; इंस कथनसे आपको पूरा विश्वास होना चाहिये कि जो काम इस वक्त आप साहेबोंने हाथमें लिया है वह नूतन नहीं है किन्तू प्राचीन है और इस काममें शामिल होकर इसमें हर तरहकी मदद देना अपना प्रथम कर्तव्य है. . इस कोनफरन्सका उद्देश्य किसी खास प्रान्त या खास जातिके वास्ते नहीं है, सर्व देशी है और मुख्य करके विद्या प्रचार, जीर्ण पुस्तकोध्धार, जीर्ण मन्दिरोध्धार, निराश्रिताश्रय, जविदयाका काम इस महा सभाने पहिले हाथमें लिया है, इसहीके साथ साथ हानीकारक रीति रिवाजको दूर करना, आपसमें सम्प बढाना, जैन डाईरेक्टरीका तय्यार करना वगरह वगरह इस कोनफरन्सने अपने हाथमें खुशीके साथ लियाहै और जिन जिन बातोंपर महा सभाने सुमारे बधारेका विचार किया है वह सब समयानुसार ठीक हैं. आजकल. जैन समें विद्याका प्रचार बहुतही कम रह गया है और खास करके स्त्री वर्गकी शिक्षा तो निपादा गालत की जाती है; माताओंके मूर्ख रहेनेसे संतानकी किस तरह अछी तालीम मिल सकती है; स्त्रियोंकी मूर्खतासे कई अन्य दर्शनियोंके हानीकारक रीति रिवाज अपनि महायमें प्रवेश कर गये हैं मिथ्यात्तको बढाने वाले हैं. गुजरात, काठियाण्डकी तरफ
SR No.536501
Book TitleJain Shwetambar Conference Herald 1905 Book 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGulabchand Dhadda
PublisherJain Shwetambar Conference
Publication Year1905
Total Pages452
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Jain Shwetambar Conference Herald, & India
File Size13 MB
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