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जैन कोनफरन्स हरैल्ड.
[ऑकटोबर जीवनको किस तरहसे धर्म, अर्थ, काम, और मोक्ष आदिके सम्पादन करनेमें व्यतीत करना, इसी तरहसे विद्यामें अनेक गुण हैं और विद्याही मनुष्य मात्रके तृतीय ज्ञान चक्षु है, जिसके अध्ययन करनेमें मनुष्यको प्रतिदिन कटिबद्ध होके तत्पर रहना चाहिये कारण विद्याही मनुष्य मात्रके सारे जीवन भरका सुखका हेतु हैं. विद्वान पुरुष अपनी आयुको अच्छे कामोंके करनेमें व्यतीत करते हैं और सूखे अपनी सारी अमूल्य उम्रको कलह, निन्दा, और अनेक दुराचारोंके करने और सोने (निद्रा) में खो देते हैं; इस लिये प्रत्येक मनुष्यको चाहिये कि अपनी सारी अमूल्य आयुका अमृत फल चखना चाहे तो विद्या रूपी बीजको हृदय रूपी भूमिमें संचार करे और पठन पाठनके परिश्रम रूपी जलसे उपरोक्त बीजको प्रतिदिन सिंचन करता रहे. महाशयो ! इन उपरोक्त वर्णित शुभ कार्योंके करनेमें अथवा करनेवालोंको तन, मन और घनसे यथाशक्ति उदार चित्तसे सहायता देनमें जो प्राणी कटिबद्ध होंगे वो महान् पुण्यके भागी होंगे और उनकी आत्माका निश्चयही कल्याण होगा.
प्रिय सज्जनों ! अब यहां टुक अपने हायकमलमें नेत्र बंद करके और ध्यान लगाके विचार कीजिये कि इन उपरोक्त पांचों शुभ कार्योके केवल निर्वाह ही के लिये श्री जैन श्वेताम्बर कोनफरन्सने चार आना वार्षिक, जो कि कितना तुच्छ द्रव्य है, जैन श्वेताम्बर सुकृत भंडारमें प्रत्येक श्वेताम्बर जैनी चाहे पुरुष हो वा स्त्री, चाहे बालक हो वा बालिका, लेनेका उद्योग किया है; इस लिये यह उद्योग सर्वत्र ग्राम और नगरोंमें अवश्यमेवही प्रचलित होना चाहिये. 1. इन उपरोक्त पांचो शुभ कार्योंमें कितने तुच्छ द्रव्यके व्यय करनेसेही कितने बडे भारी पुणे पके हिस्सेदार हो जाओंगे, अतएव सर्व श्वेताम्बर जैनी भ्राताओंको यही उचित है कि वो उपरोक्त पांचों शुभ कार्योंके निर्वाह होनेकी सहायतामें चार आना ।) रूपी तुच्छ द्रव्यके वार्षिक देनेमें कदापि त्रिमुख न हो, क्योंकि कोनफरन्स चांदी सोनेकी खानि तो है ही नही कि जिसमेंसे द्रव्य निकाल २ कर अच्छे २ कार्य होते जांयगे, इसके तो यही सुकृत भंडाररूपी श्रोत है कि जिसके जरियेसे द्रव्यकी आय होगी और शुभ कार्योंमें व्यय होगा जैसे एक कहावत है कि, 'सात जनोंकी लाकडी और एक जनेका भार' इसका तात्पर्य यह है कि अकेला आडमी कोई कार्यको पूरा करना चाहे तो कठिनताईसे होता है और सात आदमी मिलके किसी कार्यको करना चाहै तो बहुतही सुगमताले होसकता है. यह प्रत्यक्ष देखिये कि जैसलेमरका प्राचीन पुस्तक भंडार इसी कोनफरन्स ही के बाहवलसे खुलवाया गया, जिसके लिये पहिले कितनेही धनाड्य पुरुषोने प्रयत्न किये थे किन्तु सर्व निष्फल गये. इसी तरहसे यदि सर्व नैनी इस सुंकृत भंडारमें ।) चार आना रूपी तुच्छ द्रव्य वार्षिक देव तो सम्भव है कि तीन लक्ष रूपथे वार्षिक एकत्रित हो सकते हैं जिससे ऐसे २ शुभ कार्य सम्पादित होते जायगे कि जिनका दखकेरक अन्यमता चकित हो जायगे और धर्मकी वृद्धि होगी.