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________________ १९०५ ] समाचार संग्रह . समाचार संग्रह. मुनिराज श्री हंस विजयजीनें जबसे लघु बयमें संसार छोडकर दीक्षा ली है उसही वक्तसे अपनी आत्माका कल्याण करते हुवे अन्य कई प्राणियोंको इस भवजल समुद्रों डूबते हुवेको बचाया है. यह महात्मा स्वपरोपकारार्थ पूरब, बंगाल, पञ्जाब, राजपूताना, मालवा, गुनरात, काठियावाड, दक्षिण वगरह प्रान्तोंमें धर्मका उद्योत करते हुवे और जगह २ पाठशाला, पुस्तकालय स्थापन कराते हुवे, पुराने २ जात के झगडोंको ते कराते हुवे, पूर्वाचार्यों के मनोहर प्रतिमायें जगह २ यथायोग्य स्थापित कराते हुने, अटाई महोत्सव की धूमधाममें धर्मको दिपाते हुवे अब इस चतुर्मासमें कच्छ मांडवीमें विराजते हैं. कोन्फरन्सके कर्तव्य और हेतवोंको यह महात्मा बहूत ही पसंद करते हैं और जहां जाते हैं वहांपर उनके अनुकूल उपदेश देकर कार्य वाही कराते हैं. इस समय कच्छ मांडवी में श्राद्ध समुदाय को सदोपदेशरूपी अमृत पान कराकर एक जैन पाठशाला खोलने पर उत्कंठित किया है. इस वक्त तक ३३०००) तेतीस हजार रुपये की रकम तो भरगई है, टीप जारी है, पचास हजार रुपये तक टीपमें भरजानेकी आशा है. इस काममें सेठ माणकचन्दभाई जियादा प्रयास ले रहे हैं और सेठ नाथाभाई वगरह अन्य अग्रेसरोंका परिश्रम भी प्रशंसनीय है. ३०९ कच्छ मांडवी में पाठशाला और धर्मोत्सव. अठाई महोत्सव आनन्दपूर्वक बहूत धूमधाम और ठाठमाठसे हुआ है. महोत्सव होनेसे अनुमान चार हजार रुपयेकी देव द्रव्यमें उत्पति हुई. जलयात्रामें सैंकडों ढुंढियामी शामिल हु और उत्सव की धूमधामको देखकर बहूत खुश होते थे. बरघोडामें हजारों आदमियोंकी भीडभाड थी. जैनधर्मकी महिमा प्रसार होरही थी. अन्य मुनिराज भी इसही तरह प्रयास करके जगह २ इसतरह की कार्यवाही करावेंतो कोन्फरन्सके हाथमें लिये हुवे काम बहूत जल्द सफल हो सकते हैं. सिरोही में तपस्या - सिरोही ( राजपूताना ) में गुरणीजी श्री पुण्यश्रीजीनें चवदह ठाणोंसे चतुर्मास किया है. तपस्या अच्छी हुई. खुद पुण्यश्रीजीनें अठाई की चम्पाश्रीजीनें ३२ उपवास और भगत श्रीजीनें २४ उपवास किये. इनके साथ सिरोही के संघवालोंने नीचे मूजिब तप किया: अठाई - सात उपवास - पांच उपवास-तीन उपवास - बेला - उपवास -- आंबिल- एकासणा ६. १४ ६.४ ५६३ ३८ ३१ पारणा भादों वृदि ६ को हुवा - तपस्या के समय पूजा वगरह उत्सव ठीक हुवा. १ ११ पालीताणा ठाकुरकी मृत्यु - पालीताणा ठाकुर सर मानसिंघजी सूरसिंघजी के सी. एस. आई. की युवावस्थामें मृत्यु तारीख २९ अगष्ट सन १९०५ को हुई, उक्त ठाकुर साहब
SR No.536501
Book TitleJain Shwetambar Conference Herald 1905 Book 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGulabchand Dhadda
PublisherJain Shwetambar Conference
Publication Year1905
Total Pages452
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Jain Shwetambar Conference Herald, & India
File Size13 MB
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