SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 336
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ३१० जैन कोन्फरन्स हरेल्ड. [ सप्टेम्बर सन १८६३ ई में पैदा हुवेथे और २४ नवम्बर सन १८८५ को गद्दीनशीन हुवेथे. भावनगरमें उनकी मृत्युके दिन कचहरियां और मदरसे बन्द किये जाकर उक्त ठाकुरके परलोक गमनका शोक प्रगट किया गया. उस प्रान्तके साहब पोलीटीकल एजन्ट बहादुर पालीताणा पहुंचकर ठाकुर साहबके खजानेके महोर लगाकर इन्तजाम करदिया है. यद्यपि उक्त ठाकुर साहब जैनियोंसे हमेशा प्रतिकूल थे और जैनधर्मका हमेशा अनादर और अविनय करनेपर कमर बान्धे हवे थे और जैन संघको हर वक्त कई प्रकारकी तकलीफें देकर उनकी धर्म करणीमें विन डाला करतेथे तो भी उनके सिर्फ ४२ वर्ष की युवावस्था में मरजाने पर हम अफसोस करते हैं. इन ठाकुर साहबके साथ लडाई झगडा चलनेसे यद्यपि जैन समुदायका बहुतसा द्रव्य व्यय होता था तोभी इनका मुकाबिला रहनेसे हम अपने धार्मिक फर्जीपर कमर बान्धे हुवे. तय्यार रहते थे और हमारी धर्म लागणी बढती ही जाती थी. मनुष्य देह धारण करके इस संसार असारमें जीवास्माकी बासना प्राण गमनान्तर दो प्रकारसे रह जाती है. जो मनुष्य धर्म कृत्य करता है, दया पालता है, अपने देशकी उन्नति करता है उसकी गुलाबके पुष्पकी जैसे सुगंधित वासना रहनाती है और जो मनुष्य अकृत्य करता है, दूसरोंको नुकसान पहुंचाता है उसकी यादगार, सिवाय दिलगीरी और अफसोसके और दूसरी तरहपर नहीं रह सकती है. बहतर होता कि उक्त ठाकुरका बरताव हम लोगोंके साथ भलेपणका रहता. अब भी हम आशा करते हैं कि जैन समदायके और नये ठाकुर पालीताणाके ताल्लुकात संगीन पाये पर परस्परके हित और संतोष बढाने वाले होंगे. सहचारी वेङ्कटेश्वर खबर देता है कि " बडोदामें छावनीके सिवाय अन्यत्र कहींभी गाय ____ मारनेकी आज्ञा नहीं थी; परन्तु वर्तमान महाराजने तीन आने बडोदा शहरमें गाय मार- फीस लेकर नगर भी गाय मारनेकी आज्ञा दी है. क्या श्रीमान् नेकी आशा. गायकवाड इसे भी अपने राज्यके सुधारोमेंसे गिनते है ? हिन्द राज्यसे गो हत्याका उठाना अभिष्ट है परन्तु हमारे स्वतंत्र महाराज उसके लिये आज्ञा दे रहे हैं यह कैसी उलटी बात है." हम नहीं खयाल कर सकते हैं कि यह बात कहां तक सच्ची है. वेङ्कटेश्वर यूटी खबर दे यह भी नहीं माननेमें आता और श्रीमान् गायकवाड तीन आनेकी छोटीसी रकमकी फीस लेकर नगरमें गो हत्याका प्रचार करावें यह बात भी असंभव मालूम देती है. अगर वाकई वेङ्कटेश्वरकी खबर सच्ची है तो हम श्रीमान्का तथा उनके कर्म चारियोंका ध्यान खेंचना उचित समझते हैं कि वह इस हत्याके कामको फोरन बन्द करें,
SR No.536501
Book TitleJain Shwetambar Conference Herald 1905 Book 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGulabchand Dhadda
PublisherJain Shwetambar Conference
Publication Year1905
Total Pages452
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Jain Shwetambar Conference Herald, & India
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy