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________________ ३०८ . जैन कोन्फरन्स हरैरुड. [ सप्टेम्बर उप्पो . - संप ऋषि एक समे पधार्या पुनामांहि । राजा बाजीराव किधुं सन्मान न कांहि || चढ्यो रोष ऋषि चित्त भूपनो धनमद भाली । शाप दीधो ऋषि आप बजावी हाथे ताली || सागरमां हिंदुस्तानी पडो लक्ष्क्षी आ पापथी । पछी तुरतज लक्ष्मी त्यां पडी, संप ऋषिना शापथी |॥ १ ॥ - विचार करो के बाजीराव जेवा महासत्ताधारी छतां पण संप जालव्यो नही तेथी शु परिणाम आव्युं ? बीजो पण एक छप्पो टांकी बतावु छु. छप्पो . संवत् तेर त्रेपन, साल विक्रमनी ज्यारे । दिल्लि अलाउदीन, तखतपर बेठो त्यारे || मंत्री मलेकजेब, राज्य लेवा रुचि जोडी । विष दइ मार्यो शाह, शाहजादा चा फोडी || पण एक मास दिन पंच, सुख भोगवी भुंडी रीते मुओ। तजी संप सुख नही संपजे, जरूर विचारीने जूओ ॥ १ ॥ दिल्लि आदिक देश, थया जगमां नृप जे जे । सेव्यो नहि जो संप, मुआ वण मोते ते ते ॥ कोइने कुंवरे हण्यो, हण्यो कोइने पितु माते । कोइ प्रधाने हण्यो, हण्यो कोइने निज भ्राते || शुभ रोते संप न सेवतां, राजा रंक पिडाय छे । धनथी सुख को नथी धारजो, संपथकी सुख थाय छे ॥ २ ॥ ... उपरमा छप्पापरथी पण प्रगट जणाइ आवे छे के, सुख मेलववाने संप न राखतां कुसंप उभो कर्यो परंतु शं सुख मेलव्युं ? एम तो जरुर जोवामां आवशे के रोगी ज कुपथ्य तरफ रुचि मोडशे. तेम ज जेना भाग्यनी खामी जोवामां आवशे तेज कुसंपरूप कुपथ्य सेवन करी वैरनीज वृद्धि करी लेशे. परंतु लाभ कोइ प्रकारथी पण कहाडवाना नथी ज, एम खूबज समजवानुं छे. आ मारा विषयने हुं इहांपर ज बश करूं छु.
SR No.536501
Book TitleJain Shwetambar Conference Herald 1905 Book 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGulabchand Dhadda
PublisherJain Shwetambar Conference
Publication Year1905
Total Pages452
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Jain Shwetambar Conference Herald, & India
File Size13 MB
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