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________________ १९८५ ] जैन श्वेताम्बर ग्रन्यूएट्स ऐसोसिएशन्के प्रसिडेंट मि. गुलाबचन्दजीका प्रयास. ३०३ सेवा पूजाका इन्तजाम इस तरहपर करते हैं कि हम औसवालोंके इस गाममें पांच घर हैं सो पर्दूषणके दिनों में तो जो (श्रावक) जिस दिन व्रत करेंगा उसदिन न्हानेका (स्नान करनेका) आरम्म सारम्म टालकर पूजा नहीं करेगी. बाकी पयूषणके दिनों में सारा (सब संघ ) पूजा करेंगे बाकी एक एक महीनेके औसरेसे पूजन करते रहेंगे और एक रुपये महीनेकी सामग्री केसर, धूप, चांवल, घृत, चन्दन, बादाम वगरह चढाते रहेंगे. (चन्दा सालाना इस तरह पर देते रहेंगे). रामचन्दर पीपाडा पांच रुपये; जवाहीरमल पीपाडा ढाई रुपये; फतहलाल पीपाडा ढाई रुपये; केसरलाल लोढा एक रुपया; सुवालाल वाकणा एक रुपया. मुकरडे बारा रुपये सालकी सामग्री चढाते रहेंगे. यह ठहराव हमने हमारी राजी खुशीसे किया इसमें किसी तरहका फरक आवेगा नहीं. द. जवाहिरमल पापाडाका द. रामचदर पीपाडाका द. फतहलालका द. केसरलाल लोडाका द. सुवालालका टोडारायसिंबकी तहसील में पहुंचकर पञ्चान औसवालान, दिगाम्बर सरावगियान और अगरवालानकी सभा करके सांसारिक और धार्मिक शिक्षा पर भाषण देकर पुरुष और स्त्री सिक्षाका प्रबन्ध करनेकी तरफ और कन्या वीक्रय बंध करनेकी तरफ सबका ध्यान खेंचा गया तो कुल पञ्चानने नीचे मुजिब ठहराव किया:--- " राज सवाई जयपूर निजामत मालपुरा तहसील टोडारायसिंव. कस्वा टोडारायसिंघके समस्त पञ्चान तीनों तडके पञ्च सरावगी, पञ्च औसवाल, पञ्च अगर वाला राजी खुशीसे इकठा होकर नाजिमजी साहब गुलाबचन्दजीका व्याख्यान सुनकर यह ठहराव किया कि बेटीका बेचना (बेटीके सुसरालले बेटीका रुपया लेकर उसकी शादी करना) विलकुल धर्म शास्त्रके खिलाफ है इस वास्ते आजसे आगे हम समस्त पञ्च तीनों तडोंने मन्दिर श्रीजीमें इकठे होकर बेटीके रुपये लेना बन्द कर दिया आयंदा बेटीका पैसा लेवें नहीं. पञ्चायती दस्तूर जो खर्चका कदीमसे है नेग कमीण कारू मन्दिरजी वगरहका वह लगता रहेगा, अलबता लडकेको दूसरे गांवमेंसे हाल लडकी बगैर दामके न मिले तो इस बातकी छूट है. परन्तु इस बातकाभी १. इस गांवमें पहिलेसे ढुंढिया साधुओंने यहांके श्रावकोंको पच्छकाण करा दिये थे कि जिस रोज उपवास करो उस दिन विलकुल मत न्हावो इस लिये उस नियमको न तोडनेके लिये यहां पर ऐसा प्रबन्ध हुवा है. २. यह शर्त इस वास्ते रखी गई है कि अगर दूसरे गांवके महाजन अपनी लडकी वगैर लेने रुपयेके न दें तो उस वक्त अपने लडकेकी शादी रुपया देकर कर शकते हैं मगर इस तरफ हर गांवमें जियादा कोशिश और महनत करनेसे जब हर गांवमें यह प्रबन्ध हो जावेगा तो फिर इस शर्तके जारी रहनेका मोकाही नहीं रहेगा.
SR No.536501
Book TitleJain Shwetambar Conference Herald 1905 Book 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGulabchand Dhadda
PublisherJain Shwetambar Conference
Publication Year1905
Total Pages452
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Jain Shwetambar Conference Herald, & India
File Size13 MB
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