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शुद्ध भोजन और आचार विचारकी जरूरत.
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बंद किया जाये तो क्या हर्ज है. इस विषयमें जो लेख हमारे पास आयेंगे उनको हम खुशी के साथ इस पत्र में छापकर प्रगट करेंगे. क्यों कि इस मामले में वादविवाद करके आयंदा के वास्ते एक नियम कायम करना उचित है.
शुद्ध भोजन और आचार विचारकी जरूरत.
( अमोलखचंद देसरला - राजनांदगांव . )
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यह सब भ्रात्रगणोंकों भली भांती विदित है कि जो जिनदेवको माननेवाले हैं. बेसी कहलाये जा सकते हैं. जैन धर्मके नियम किसी एक खास जातिसे सबन्ध नहीं रखते पर जैन धर्मके नियमोंको पालन कर हर एक जैनी कहलाये जा सकते हैं. जैनी बनने के लिये इस बात की ज़रूरत नहीं कि उनका खान पान जैनीके साथ होवे जैसे किं और जाति में होता है, अर्थात आज कल के रिफोर्मर लोग विधवा विवाह करके या एक दूसरेके साथ खान पान करके अपनी रहे है. कोनफरन्सका वह उद्देश्य नहीं है. आगे तीनही अंकों में आप लोगोंको कोनफरन्सका कृत्य कर्म भली भांती दशार्या गया है इस कारण आप लोगोंको लेख पढाकर त्रास देना नहीं चाहता किन्तु जो लोग इस धर्मके उद्देशोंकों अर्थात “अहिंसा परमो धर्मः" को साफ और सच्चे मनसे ग्रहण करते हैं वेही जैनी कहलाने के योग्य हैं जिस तरह जैमी लोगों का खानपान धर्म के नियमों के अनुसार पवित्र है उसी तरह उनका आचार और व्यवहार भी पवीत्र हैं, जैनी लोग मद्य मांस मधु कंदमूल आदि अभक्ष्य पदार्थको भक्षण नहीं करते; शुद्र आहार करना इस जातिका पहिला नियम है
कारण इसका यह है कि पवित्र आहार द्वारा पोषण किया हुआ शरीरही इस धर्मको पालनकर मुक्ति साधन कर सक्ता है. अपवित्र भोजन करनेवालोंले यह शरीर इतना मलिन हो जाता है कि इस धर्मका असर उस जीव पर बीलकुल नहीं ठहरता इस लिये इस धर्म असर उन्ही जीवों पर हो सकता है जो अपने शरीरकी रक्षा पवित्र पदार्थों द्वारा करते और कराता हैं.
पाठक गण आपको यह बात भली भांतिमालूम है कि एक शुद्ध और अशुद्ध पदार्थ मेलसे तीसराही पदार्थ उत्पन्न हो जाता है जो कि गुण और स्वभावमें बिलकुल नहीं मिलता इसी तरह जो उच्च जातिके मनुष्य जिनका शरीर उत्तम शुद्ध भोजन करनेवालोंके रजवीर्य से उत्पन्न हुआ है उनका मेल कदापि अभक्ष्य पदार्थोंके खानेवालोंसे नहीं हो सक्ता "यहांतक कि उनके