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________________ । २३८ ११जैन कोन्फरन्स हरैल्ड. [जुलई विचार किया और अपने विचारको श्रावकोंपर प्रगट करके एक कमिटी मुकर्ररकी कि जिसके गंभीर विचारका सारांश यह आया कि जैन मुनियों तथा गृहस्थोंकी शिक्षाके वास्ते एक सं.. स्कृत पाठशाला बनारसमें अथवा जयपूरमें खोली जावे क्योंकि पंडितोंकी संख्या और उनके .. विद्वत्ताके हिसाबसे जयपुर छोटी काशी कहलाती है. परन्तु मुनिराजश्री धर्म विजयजीने काशीमें एसी पाठशालाका होना इस कारणसे मुनासिब समझा कि अवलतो काशी जैन क्षेत्र है यहांपर बहुतसे कल्याणक हुवे हैं और श्रीपार्श्व प्रभूकी जन्मभूमी है और दूसरे काशीमें इल्मके प्रचारसे पंडितोंकी सहोबतसे विद्या जल्दी हांसल हो सकती है. इसलिये उक्त मुनि महाराज ६ अन्य साधूओंको तथा १३ श्रावकोंके लडकोंको साथ लेकर गुजरातसे मक्षीपार्श्व नाथ स्वामिकी यात्रा करते हुवे काशी पहूंचे. इस तरफ कितनेक समयसै मुनि विहार न होनेसे इन महात्मावोंको रस्तेमें बहूत कष्ट सहन करना पडा. परन्तु मुनिमंडल इस संसार में - जन्मही कष्ट सहन करके आत्माको स्वच्छ करनेको लेते हैं इसलिये कुलतकलीफोंको तकलीफें न समझकर बनारस पहूंचे. पूर्व देशमें जैन मुनियोंके वेषको कितनेक कालसे न देखनेसे वहांके मनुष्योंको इन महात्मावोंकी क्रिया, बर्ताव, बेषको देखकर आश्चर्य मालूम हुवा और थोडेही दिनोंमें इन महात्माओंने अपने सदाचार द्वारा बनारस निवासियोंपर अपने महत्वताकी अच्छी छाप, जमादी. , पाठशालाका नाम श्रीमद्यशोविजयजी संस्कृत पाठशाला रखकर आज दो सालका अरसा हुवा जबसे पठनपाठनका काम चलाया गया. इस दो सालमें मुनि संख्या तो वहही ७ की रही परन्तु श्रावक लोग १३ से ३४ के नम्बरपर पहूंचे. अबतक पाठशालामें संस्कृत और धर्मतत्वकी शिक्षा दीगई है परन्तु अब अंग्रेजी भाषाकी शिक्षा दिए जानेकाभी वेचार किया गया है. शिक्षाके सिवाय श्रावकोंके आचारपर पूरी निगरानी रखी जाती है; और सामायक प्रतिक्रमण, देव पूजा नित्यकर्मका पूरा ख्याल रखाजाकर श्रावकाचारमें इस पाठशालाके शिष्योंको दढ किया जाता है. अगर इसही तरहपर अच्छे प्रबन्धके साथ इस ठशालाकी कार्यवाही चली और कुल जैन समुदायकी इस पाठशालाकी तरफ लागणी रही तो हूत जल्द इस पाठ शालाका उम्दा नतीजा देखनेमें आवेगा. इस पाठ शालाके वास्ते एक अच्छे मकानकी तजवीज अपने कोनफरन्सके जनरल सेक्रेटरी मुम्बई निवासी सेठ वीरचन्दजी दीपचंदजी, सी. आई. ई. जे. पी. और सेठ गोकुलभाई मूलचंदजीनें अपने [ससे एक मोटी रकम खर्च करके खरीदी है और पाठशालाका खर्च निभानका फन्ड अपने हसानानिवासी डोसी बैणीचन्द सूरचन्दनें बहूत प्रयास करके इकट्ठा किया है. पाठशालाके न्दिर तथा पुस्तकालयकी व्यवस्थामें अपने विख्यात सेठ वीरचन्दजी दीपचन्दजी की धर्म सेठाणी डाई बाईनें अच्छी मदद दी है.
SR No.536501
Book TitleJain Shwetambar Conference Herald 1905 Book 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGulabchand Dhadda
PublisherJain Shwetambar Conference
Publication Year1905
Total Pages452
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Jain Shwetambar Conference Herald, & India
File Size13 MB
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