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जैल कोनफरन्स हरल्ड.
[ जुलई ज्ञान ना पांच प्रकार रे ॥ ... . .. मति श्रुत अवधि ने मनपर्यव, केवल एक उदार रे ॥ पंचमी० ॥२॥ मति अठावीश श्रुत चवदह बीश, अवधि छे असंख्य प्रकार रे ॥ दोय भेदें मन पर्यव दाख्यो, केवल एक उदार रे ॥ पंचमी० ॥ ३॥ चन्द्र सूर्य नक्षत्र तारा, एकथी एक अपार रे ॥ केवल ज्ञान समोनहीं कोई, लोका लोक प्रकाश रे ॥ पंचमी० ॥ ४ ॥ पारसनाथ प्रसाद करीने, म्हारी पूरो उम्मेदरे ॥ समय सुन्दर कहे हूं पण पामुं,
ज्ञान नो पांचमो भेद रे ॥ पंचमी० ॥ ५ ॥ इस वृत्तांतसे ज्ञानकी महिमा अच्छी तरह मालूम हो सकती है. ज्ञान और क्रियाका डा इसतरहपर बतलाया गयाहै कि जिस तरहपर राजा और मुसाहिबका एक दूसरेके मिलाने जो कार्य होताहै उसमें सिद्धि अवश्य होती है. सिर्फ ज्ञानही ज्ञानके अभिमानमें क्रियाको ड बैठनेसे अपने इच्छित स्थानपर पहुंचना असंभव होजाताहै. इसही तरहपर सिर्फ क्रिको ग्रहण करके ज्ञानको प्राप्त न करनेसे अन्धकूपके अन्धेरेमें डावाडोल होना पडता है र अज्ञानताके साथ क्रिया करनेका श्रम व्यर्थ होता है. ज्ञानको चक्षुसहित पंगू मनुष्यकी पमा दी है. क्रियाको पैर सहित अन्धेकी उपमा दी है. यह दोनों प्रकारके मनुष्य भिन्न २
सी इच्छित वस्तुको प्राप्त नहीं कर सकते है परन्तु दोनोका समागम होनेसे ज्ञान क्रियापर वार होकर विचारा हुवा काम करसकता है.
ज्ञान प्राप्त होनेसेही सच्ची और असली क्रियाका बोध होसकताहै. इसही कारण है महात्मावोंने परिश्रम उठाकर बलके अपने प्राणोंपर बाजी खेलकर जिस जगह उनको नकी प्राप्ति हो सकती थी वहां जाकर कष्ट सहन करके ज्ञानको प्राप्त किया है. हमारे सुप्र|द्ध श्रीहरीभद्र सूरीजीके दो शिष्य हंस और परमहंसनें व्याकरण, न्याय, अलंकार, काव्य, __ और जैन शास्त्रोंका पूरा अभ्यास करके बौद्ध धर्मका न्याययुक्त खंडन करनेकी आभि
। बौद्ध धर्मके ग्रंथोंका अभ्यास करने के लिये गुरु महाराजकी आज्ञा लेकर बौद्धोंके