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________________ १९०५] सम्पादकिय रिप्पणी. नुसार स्वर्गस्थ मि. वीरचंद राघवजी गांधी बी. ए. को अमेरिका भेजा था और उनकी सहायता के वास्ते उक्त मुनि महाराजने जैन धर्मका तत्व एक स्थान पर एकत्रित करके चिकागो प्रश्नोत्र नामकी एक पुस्तक तय्यार करके वीरचन्दजी को दी कि जिसकी सहायतासे मि. वीरचन्दजीने अमेरिकामें जो अपूर्व कामयाबी हासेल की वह सब सजनोंको अच्छी तरह विदित है. अब उस उपयोगी पुस्तकको लाहोर निवासी मि. जसवंत रायजी जैनीने ( कि जो श्री आत्मानंद जैन पत्रिका के सम्पादक है ) छपवा कर प्रगट की है. पुस्तक अच्छे कागज पर मोटे बालबोध हरफोंमें छपीहै, सुन्दर कपडेका पूठा है. महाराज श्रीकी सुन्दर फोटो पुस्तकके आदिमें लगाई गई है. उपोद्घात के ८ पृष्ट और पुस्तकके ११० पृष्ट है. किमतका सिर्फ एक रुपया रखा है. प्रगट कर्ताने सर्व हक्क स्वाधीन रखा है. इस पुस्तकमें मुख्य करके "ईश्वर क्या है उसको किस तरह और किस स्वरूपमें मानना चाहिये; जैनियो और अन्य मतावलंबीयोंके माने हुवे ईश्वरका स्वरूप; ईश्वर जगत् का कर्ता सिद्ध हो सकताहै या नहीं; कर्म क्या है; कर्मके मूल भेद कितने है और उत्तर भेद कितने है, किस किस कार्य से किस किस कर्मका बन्धन होता है और उनका क्या क्या फल होताहै; एक गतिसे गत्यंतरमें कोन ले जाता है; जीव और कर्मका क्या सम्बन्ध है; कर्मका कर्ता जीव आपही या और कोई अन्य उससे करवाता है, अपने किये कर्मका फल निमित्त द्वारा जीवभोक्ता है या और कोई भुगानेवाला है; सर्व मतोंकी किस किस विषयमें ऐक्यता है; आत्मामें ईश्वर होने की शक्ति है या नहीं; मोक्षपदसे संसारमें जीव पुनः नहीं आता है; प्रतिसमय जीव मोक्षको प्राप्त होनेपरभी संसार जीवोंसे रहित नहीं होवेगा; पुनर्जन्मकी सिद्धिआत्माकी सिद्धि-ईश्वरकी भक्ति करनेसे क्या फायदा होसकता है, मूर्ति कैसी और क्यों माननी चाहिये. मनुष्य और ईश्वरका सम्बन्ध और मतवालोंनें क्या माना है. साधुका क्या धर्म है और गृहस्थीका क्या धर्म है. धार्मिक और संसारिक जिंदगीके नीतिपूर्वक लक्षण, नानाप्रकारके धर्मशास्त्रोंको देखनेकी आवश्यक्ता और उससे होते हुवे फायदे. धर्मशास्त्रावलोकनके नियम. ईश्वर अवतार धारण करता है या नहीं. ईश्वर दृषण रहित या दूषण सहित है. धर्मसे भ्रष्ट हुवे की पुनः शुद्धि. जिन्दगीके भय निवारणके कायदे. धर्मके अंग और लक्षण " वगरह विषय चर्चे गये हैं कि जिनके अवलोकनसे जैनधर्मके तत्त्वोंका सम्पूर्ण ज्ञान होसकता है. हम, आशा करते हैं कि, इस पुस्तककी पुनरावृत्तिमें इस पुस्तकके प्रसिद्ध कर्ता पाठकोंकी सुगमताके वास्ते विषयानुक्रमणिकाभी छपवाकर प्रगट करेंगे और कर्ताके फोटोके साथ भी संक्षिप्त जीवन चरित्र छपाकर बांचक वर्गके हृदयको संतोष देवेंगे. हर जैनीके पास इस पुस्तकका होना बहूतही जरूरी है. कारसपोंडेंस-जो जो समाचार पत्र हमारे पास कई सद्गृहस्थोंने भेजे है उनको इस मासके पत्रमें जगह कम रहनेसे नहीं छाप सकेहै, जूलाई मासके अंकों प्रगट करेंगे.
SR No.536501
Book TitleJain Shwetambar Conference Herald 1905 Book 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGulabchand Dhadda
PublisherJain Shwetambar Conference
Publication Year1905
Total Pages452
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Jain Shwetambar Conference Herald, & India
File Size13 MB
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