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________________ १६ "जैन कौनफरन्स हरैल्ड. [ जून दिक्कत दर पेश आने से कई अन्य जरूरी कामोंकी तरफ ध्यान देनेको कम अवकाश और समय मिलता है. अबल तो इस पदके धारण करनेवाले श्रावकों की संख्या गिनी गांठी है, उसमें भी किसी को कुछ बांधा और कीसीको कुछ बांधा आ जाती है. जिस शहर में कॉन्फरन्स होती है वहां के संघको इस बात का बहुत शोच विचार करना पडता है और जगह २ लिखा पढ़ी करके कई "सज्जनोंको आमंत्रण करने पर जब उनकी तरफसे जबाब ठीक तोर पर नहीं मिलता है तो फिर उनकी मनकी गति का हाल वह ही है. बहुत से महाशय इस पद को धारण करनेसे डरते है, बहुतसे खर्च के इनकार कर जाते है, बहुतसे अपने दिमागकी ताकत को खर्च न करके कायम रखनेकी इच्छासे हस पदका " मान लेनेसे इनकार कर जाते हैं. जैसे जैसे जलसेके दिन नजदीक आते जाते है वैसे २ इस प्रमुखके शोधकी जियादा जरूरत पडती है और फिर जैसे तैसे करके किसीके सरपरभी पकड़ धकड करके इस ताजको रखना पडता है. इस तरहकी कार्यवाहीसे सभा के आमंत्रण करने वालोंके जोश और आल्हादमें फरक आता है इस कारण कोनफरन्सके हित चाहने वालोंको पहिले से ही इस बातका प्रबन्ध करना उचित है. जान सकते खयाल से बदस्तूर पाटनके संघकोभी प्रमुख के शोधका शोच पड़ा है इसलिये उनकी तरफसे जगह जगह पत्र भेजेगये है और दरयाफ्त किया गया है कि चोथी कोनफरन्सके प्रमुखका पद किसको दिया जावे. हम आशा करते है कि अपनी महा सभाके खैरखुहा इस बात को बहुत जल्द तै करेंगे और प्रमुखको पसंद करके पाटनके संघको संतुष्ट करेंगे. पाटनके संघनें इकट्ठा होकर नीचे मुजिब ठहराव पास किये है— पाटन के संघका स्तुतिपात्र ठहराव. १. पालीताणा में भाटलोगोंका अपने साथ अनुचिताचरण होनेके सबब से कोई जैनी भाइ उन लोगोंके साथ दान वगरह देनेका सम्बन्ध नहीं रखेंगे और डूंगर उपर देरासर वगरहमें कोई नाणा अथवा पदार्थ नही रखेंगे. २. यद्यपि पाठनमें कन्याविक्रयका प्रचार नही है तोभी यह शास्त्रविरुद्ध रिवाज प्रवेश न करे इस वास्ते कोई मनुष्य कन्याविक्रय करने न पावे. नोट::- इन दोनों ठहरावोंके विरुद्धाचरण करनेवाला श्रीसंघका गुनहगार करार पावेगा. चिकागो प्रश्नोत्र इस नामकी एक सुन्दर पुस्तक थोडे दिन हुवे छपकर प्रगट हुई है. अमेरिकामें जब सब धर्मोकी महा सभा हुई थी उस समय स्वर्गस्थ आचार्य महाराज श्री आत्मारामजीको चिकागो पधारनेके लिये आमंत्रण आयाथा परंतु उनका उस जगह कई कारणोंसे जाना असंभव होनेके कारण और चिकागोकी कमिटी की तरफ से जियादा आग्रह होनेसे मुंबईके संघने उक्त आचार्य महाराज की आज्ञा
SR No.536501
Book TitleJain Shwetambar Conference Herald 1905 Book 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGulabchand Dhadda
PublisherJain Shwetambar Conference
Publication Year1905
Total Pages452
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Jain Shwetambar Conference Herald, & India
File Size13 MB
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