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________________ _ जैन समवायो सस व्य. . ३. ऐसे धर्मगुरू और गुरणियोंका सिर्फ एक जिले में सा एक बाहरके आसपासके गावोंमेंही बिहार करके काल व्यतीत करना योग्य मालुम नहीं होता है, जहांपर उनके विराजने और बिहार करनेसे समुदाय सुधरी हुई है और धर्मकार्यमें प्रवर्तती है उन समुदायके उपर उनका रुचा हुवा काम छोडकर ऐसे क्षेत्रोंमें बिहार करें के जहांपर कभी साधू मुनिगजके दर्शन तक नहीं हुये हैं, और धर्मोपदेष्टावोंके अभावसे वहांकी समुदाय सिर्फ नाम मात्र जैनी है, किन्तु कृत्य उनके ऐसे हैं के जो सुधारेके योग्य हैं. ऐसे मुनिबिहारसे जो २ कुरीतिरिवाज प्रचलित हो गये हैं शीघ्रही छूट सकते हैं. ४. यदि " जैन" पत्र साप्ताहिक है और जैन कोमकी सेवापर उसके प्रबन्धकर्ता ने कमर बांध रखी है और इस पत्रद्वारा जहांतक मुमकिन होता है ,देश प्रदेशकी ऐसी खबरें छापकर बांचकबर्गको मालूम करता है कि जिनका इस पत्रके अभावमें मालूम होना असम्भव है परन्तु कुल हिंदुस्थानके जैनी गुजराती भाषा नहीं जानते है, न गुजराती भाषाको समझसकते हैं, देवनागरी प्रायः करके कुल हिंदुस्थानके मनुष्य समझसकते है, इस कारण देवनागरी टाइप और हिन्दुस्थानी भाषाका कमसे कम एक साप्ताहिक पत्रका प्रगट होना बहुत ही जरूरी है. कि जिसमें अच्छे २ विद्वानों और बुद्धिमानोंके बिचारशील लेख, धर्म और जात्युन्नतिके विषयमें प्रगट होते रहे और ऐसे लेखोंद्वारा जैनसमुदायके विचारोंको स्वधर्मकी तरक्की तरफ रजू किये जावे. ५. ऐसे पत्रसे बतोर नफा पैदा करनेका ख्याल कदापि न रखा जावे; वल्के लागतके मुवाफिक उसका मूल्य रखा जाकर कोशिश यह किई जावे के यह पत्र, छोटेसे छोटे गांवमेंभीके जहांपर एक ही घर जैनीका क्यों न हो पहुंचे और अपने लेखोंका असर कुल जैन समुदायपर डाल कर उनके विचारोंको कोनफरन्सकी तरफ खेंचे. ६. जैन कोनफरन्सके उपदेशक तथा साधु मुनिराज के जिनका देशाटन हिन्दुस्थानके कुल जिलोंमें हो अपना कर्तव्य समझ कर जहां २ वे जावें वहां की डाइरेक्टरी तय्यार करें, कि जिसमें मन्दिर, उपासरा, धर्मशाला, प्रतिमा, पुस्तकालय, औषधालय, पांजरापोल, समुदाय, धर्म, क्रिया, व्यापार स्थिति, धार्मिक और सांसारिक केलवणी इत्यादिका कुल हाल दर्ज हो और रीमार्क्सके खातेमें अपनी आजादाना राय लिखें कि जो वहां की हालत देखने सुननेस उनको मालूम हो. ... ७. प्रत्येक जिलेमें जिस तरह मुनासिब समझा जावे एक, दो अथवा ज्यादा प्रान्तिक सेमेटरी स्थापित किये जावें के जो प्रतिष्ठित और धर्मलागणीवाले हों और उनके प्रान्तके हर शहर और गांवमें एक २ लोकल सेनिटेरी स्थापित किया जाये. जहांपर ऐसी योग्यता हो बतोर सलाहगीरोंके, सेंक्रिटेरियों के लिये “मोर्ड आफ एडवाइजर्स " कायम किये जावें. उनका
SR No.536501
Book TitleJain Shwetambar Conference Herald 1905 Book 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGulabchand Dhadda
PublisherJain Shwetambar Conference
Publication Year1905
Total Pages452
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Jain Shwetambar Conference Herald, & India
File Size13 MB
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